सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में देखा जा सकता है बुर्का पहने एक महिला एक गर्म लोहे की धातु को अपनी जीभ से छू रही है। यूजर्स इस वीडियो को शेयर कर इसे शरिया कानून और इस्लाम से जोड़ रहे हैं।
Dr. Maalouf नामक एक यूजर ने वीडियो शेयर कर लिखा, “मिस्र में चोरी के आरोप में एक मुस्लिम महिला को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए लाल-गर्म धातु की प्लेट चाटने के लिए मजबूर किया गया। अगर उसकी जीभ जलती है, तो उसे दोषी माना जाता है; अगर नहीं, तो उसे निर्दोष माना जाता है। यह शरिया कानून है!”
इसके अलावा अन्य यूजर ने भी वीडियो शेयर कर ऐसा ही दावा किया, जिसे यहां क्लिक करके देखा जा सकता है।
फैक्ट चेक:
DFRAC टीम ने वायरल वीडियो की पड़ताल की, हमें SRBIJA DANAS की 20 मई 2019 को serbian भाषा में प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली, जिसमें बताया गया है कि एशिया में बेडौइन के बीच एक रिवाज प्रचलित है, जिसे बिशा कहा जाता है। बिशा एक अग्नि परीक्षण है, जिसमें चोरी के आरोपी व्यक्ति को अपनी जीभ से किसी गर्म धातु की वस्तु को छूना होता है। अगर वह अपनी जीभ जला लेता है, तो उसे दोषी माना जाता है। और अगर तीन बार छूने पर उसकी जीभ न जले तो उसे निर्दोष माना जाता है। बिशा, या अग्नि परीक्षण, झूठ का पता लगाने के लिए यहूदी, नेगेव और सिनाई रेगिस्तान के बेडौइन जनजातियों द्वारा किया जाने वाला एक अनुष्ठान या अग्नि परीक्षण है। कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति सऊदी अरब की कुछ बेडौइन जनजातियों के बीच हुई थी। शराफ़ (बेडौइन सम्मान संहिता) को बनाए रखने के लिए यह बेडौइन न्यायिक प्रणाली में सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है।
इसके अलावा हमें DW Urdu की 13 अक्टूबर 2018 की एक वीडियो रिपोर्ट भी मिली, जिसका शीर्षक है, ‘बिशा- बद्दुओं की एक रिवायती अदालत’ । इस रिपोर्ट में वीडियो को इस्माईलिया मिस्र का बताया गया है। वीडियो में दिख रही इस महिला पर उसके शौहर ने 200 डॉलर चुराने का इल्जाम लगाया है।
इस प्रथा से संबंधित हमें अलअरबिया न्यूज की एक रिपोर्ट भी मिली। जिसमें बताया गया है कि मिस्र की अयादा जनजाति के लोग बिशा प्रथा को मानते हैं। सऊदी अरब में, धार्मिक विद्वानों ने अंधविश्वास और इस्लाम विरोधी होने के कारण “बिशा” की कड़ी निंदा की और शेख मोहम्मद अब्देल वहाब ने देश और अरब प्रायद्वीप में सबसे बड़ी जनजातियों में से एक मुतैर जनजाति के सदस्यों के बीच इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने में कामयाबी हासिल की। जबकि 1976 में दिवंगत राजा हुसैन के एक आदेश के ज़रिए जॉर्डन में बिशा पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था।
इस रिपोर्ट में मिस्र के वर्तमान ग्रैंड मुफ़्ती शेख साहवकी अल्लाम का हवाला देते हुए बताया गया है कि ग्रैंड मुफ़्ती ने कहा कि इस रस्म का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है।
निष्कर्ष:
DFRAC के फैक्ट चेक से स्पष्ट है कि बिशा या अग्नि परीक्षण बेडौइन जनजाति की एक प्रथा है। अग्नि परीक्षण यानि बिशा का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और कई इस्लामिक देशों में इस पर प्रतिबंध भी लगाया गया है साथ ही इस्लामिक विद्वानों ने इस प्रथा की कड़ी निंदा भी की है। इसलिए यूजर्स का दावा भ्रा्मक है।