26 अगस्त 2021 को, अफ़गानिस्तान की एक न्यूज़ एजेंसी, टोलो न्यूज़ ने ट्वीट किया कि टोलो के रिपोर्टर को तालिबान ने पीटा है। न्यूज़ एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर घटना से संबंधित एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की। लेकिन उसके ट्वीट को फ़ारसी से अंग्रेज़ी में अनुवाद करने पर सामने आया,”तालिबान द्वारा मारा गया टोलो न्यूज रिपोर्टर”।
भारत में कई न्यूज़ मीडिया आउटलेट्स, विशेष रूप से न्यूज़ एजेंसी ANI और न्यूज़ 18 की वरिष्ठ संपादक पल्लवी घोष आदि, सभी ने इसी ट्वीट के आधार पर दावा किया कि पत्रकार की मौत हो चुकी है।
पल्लवी घोष की ट्वीट का संग्रह लिंक
फ़ैक्ट-चेक:
अनुवाद के लिये सबसे अधिक सहायता Google Translate की ली जाती है। DFRAC टीम ने जब इसकी पड़ताल की तो पाया कि Google Translate ने फारसी भाषा के टोलो न्यूज़ के ट्वीट का अनुवाद पीटे जाने के बजाय “मार डाला” में किया है। गूगल ट्रांसलेशन के आधार पर ही ANI से लेकर कई मीडिया हाउसेज़ से जुड़े पत्रकारों ने टोलो न्यूज़ के पत्रकार के पीटे जाने की ख़बर को हत्या बताकर सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। हालांकि सच यह है कि टोलो न्यूज़ के पत्रकार को मारा-पीटी गया था, हत्या नहीं की गई थी। न्यूज़ एजेंसी ने इस बाबत अपनी साईट पर एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि कैसे पत्रकार जियार याद और उनके कैमरामैन को तालिबान ने बंदूक की नोक पर पीटा गया।
फिर भी एएनआई ने रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया, उसने बिना रिपोर्ट देखे न्यूज़ चला दी। ANI के कारण अन्य लोगों ने भी इसका अनुसरण किया और इस ख़बर को जमकर फैलाया। पत्रकार की हत्या की यह फ़ेक न्यूज़ इतनी तेज़ी से फैली कि संबंधित पत्रकार ज़ियार याद को खुद ट्वीट कर बताना पड़ा कि वह जिंदा हैं और उन्होंने पूरी घटना का संक्षिप्त विवरण भी सोशल मीडिया पर दिया।
टोलो न्यूज़ के पत्रकार के खंडन के बावजूद ANI ने अपनी गलती मानने के बजाय बाद में सिर्फ स्पष्ट किया कि पत्रकार की मौत नहीं हुई है।
निष्कर्ष:
DFRAC के इस फ़ैक्ट-चेक से स्पष्ट है कि एएनआई ने वास्तविक रिपोर्ट को पढ़े बिना बस टोलो न्यूज के ट्वीट के Google Translate के आधार पर मीडिया और सोशल मीडिया में फ़ेक न्यूज़ प्रभावी ढंग से फैलाई है।