विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ कश्मीरी पंडितों के पलायन पर आधारित है। जो 1990 में कश्मीर घाटी में हुआ था। ‘पलायन’ की घटना पर बनी ये फिल्म कश्मीरी पंडितों के ‘नरसंहार’ को दिखाती है। जिसके कारण फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ गई है। फिल्म ने दर्शकों की भावनाओं को भी भड़काया। नतीजा ये हुआ कि मुसलमानों के खिलाफ अभद्र मामले बढ़ गए। जो पहले ही हिंसा और तिरस्कार का सामना करते आ रहे है।
कई इतिहासकारों, टिप्पणीकारों, नौकरशाहों और कश्मीरी पंडितों की प्रमुख आवाजों के उलट फिल्म में किए गए दावों को लेकर विवाद छिड़ हुआ है। इस रिपोर्ट में, हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि फिल्म में दिखाए गए कंटेंट और सोशल मीडिया पर की जा रही बहस से जानबूझकर या अनजाने में कैसे गुमराह किया गया।
फिल्म से जुड़े फैक्ट चेक:
क्लैम – 1
फिल्म मेँ आईएएस अधिकारी ब्रह्मा दत्त की भूमिका निभा रहे मिथुन चक्रवर्ती के अनुसार, घाटी मेँ 5 लाख कश्मीरी पंडित को मार के भगाया गया था हो गए।
फैक्ट चेक
पी. पी. कपूर के द्वारा दायर की गई आरटीआई के अनुसार, 1.5 लाख लोगों ने कश्मीर से पलायन किया था। उनमें से 88% हिंदू थे। ये पलायन घाटी में हुई हिंसा और खतरे के कारण हुआ था।
वहीं हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान 219 कश्मीरी पंडित मारे गए थे। साथ ही 24000 पंडित परिवारों ने घाटी से पलायन किया था।
निष्कर्ष:
अत: यह साबित होता है कि कश्मीर घाटी छोड़ने वाले केवल 1.5 लाख प्रवासियों का रिकॉर्ड हैं। जिसमे 88% हिंदू थे। लेकिन ऐसा कोई डेटा 5 लाख की बड़ी संख्या से मेल नहीं खाता।
क्लैम – 2
दूसरे दृश्य में, दर्शन पंडित, जो फिल्म में कृष्ण पंडित की भूमिका निभा रहे हैं, कहते हैं कि 1990 में पलायन के दौरान केवल पाकिस्तानी आतंकवादियों ने लोगों को मारा था।
फैक्ट चेक:
1990 में, 4 IAF अधिकारियों को भी यासीन मलिक और अन्य ने कथित तौर पर मार डाला था। यासीन मलिक कश्मीरी अलगाववादी और जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष हैं। चार्जशीट के अनुसार, 25 जनवरी 1990 को, यासीन मलिक ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में भारतीय वायुसेना के जवानों को गोली मारी थी, जिससे कई लोग सड़क पर घायल हो गए थे।
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई ने सबूतों को इकट्ठा किया और यासीन मलिक के खिलाफ जम्मू-कश्मीर की टाडा अदालत में मामला दर्ज कराया। इंडिया टुडे, NDTV, टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे मीडिया घरानों ने भी उनके खिलाफ चल रहे IAF अधिकारियों की कथित तौर पर हत्या के मामले को कवर किया है।
निष्कर्ष:
यह दावा करना कि कश्मीर विद्रोह के पीछे केवल पाकिस्तानी आतंकवादी थे। ये पूरी तरह से भ्रामक है।
क्लैम – 3
एक अन्य दृश्य में, कश्मीरी पंडित अन्य शरणार्थियों के साथ जम्मू के बाहरी इलाके में शिविरों में रह रहे हैं। जो उन्हें प्रदान की जाने वाली जरूरतों की शिकायत करते हैं। फिल्म में एक शरणार्थी गृह मंत्री से पूछता है कि हमें अपने जीवन यापन के लिए सिर्फ 600 रुपये ही क्यों दिए जाते हैं और कुछ क्यों नहीं।
फैक्ट चेक
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कश्मीरी पंडितो को मुफ्त राशन की सुविधा के साथ 250 रुपये प्रति परिवार नकद दिया गया। इन सुविधाओं को बार-बार संशोधित भी किया गया। देश में कश्मीर से 62000 प्रवासियों का पंजीकरण हुआ था और वर्तमान में सरकार राशन पर छूट सहित परिवार के सदस्यों को प्रति व्यक्ति 2500 रुपये नकद प्रदान कर रही है। सरकार ने जम्मू के पुरखू, मुठी, नगरोटा में भी दो कमरों के मकान भी मुहैया कराए।
निष्कर्ष:
निस्संदेह ये दावा भ्रामक है, क्योंकि पलायन के दौरान केंद्र सरकार ने कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार ने अधिकांश पंजीकृत परिवारों को एक नया जीवन शुरू करने की सुविधा प्रदान की थी।
क्लैम – 4
फिल्म के एक दृश्य में कृष्ण पंडित कश्मीर वापस आते हैं और फारूक मलिक (खलनायक) से मिलते हैं, जैसा कि उनकी प्रोफेसर राधिका मेलन ने सलाह दी थी। बातचीत के दौरान कृष्णा ने फारूक मलिक बीटा पर 1990 में पलायन के दौरान 1000 परिवारों की हत्या का आरोप लगाया।
फैक्ट चेक
इकोनॉमिक टाइम्स के लेख के अनुसार, कश्मीर पंडित संगठन ने दावा किया कि 1990 में पलायन के दौरान कम से कम 399 पंडित मारे गए और बाद के 20 वर्षों में 650 मारे गए।
वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सरकारी आंकड़ों में 219 की संख्या का हवाला दिया गया है।
निष्कर्ष:
इसलिए 1000 परिवारों के मारे जाने का दावा भ्रामक है। क्योंकि किसी भी विश्वसनीय डेटा स्रोत से इसकी पुष्टि नहीं होती है।
क्लैम – 5
एक दृश्य के दौरान जहां कृष्णा पंडित और फारूक मलिक बातचीत कर रहे थे, कृष्णा ने दावा किया कि कश्मीर की घाटी में पलायन के बाद केवल 800 कश्मीरी पंडित बचे हैं। कृष्णा को जवाब देते हुए फारूक ने कहा कि घाटी में 10,000 कश्मीरी पंडित रह रहे हैं।
फैक्ट चेक:
जम्मू-कश्मीर सरकार के अनुसार वर्ष 2010 में अभी भी कश्मीर में 3445 लोगों सहित 808 परिवार रह रहे हैं। एएनआई, बिजनेस स्टैंडर्ड और द यूरेशियन टाइम्स जैसे मीडिया हाउस ने भी इस खबर को कवर किया है।
निष्कर्ष:
इसलिए 800 कश्मीरी पंडित परिवारों या वर्तमान में कश्मीर में रहने वाले 10,000 पंडितों के दोनों दावे तथ्यात्मक रूप से गलत हैं।