सोशल मीडिया साइट्स पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बारे में ख़ूब दावे किये जाते हैं। उन्हीं में एक दावा ये भी है कि उन्होंने नेपाल-भारत विलय के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
संजीव कुमार दास नामक फ़ेसबुक यूज़र ने एक लम्बा-चौड़ा पोस्ट लिखा है। इस पोस्ट में संजीव ने नेहरू की आठ ग़लतियां शुमार करवाई हैं। सबसे पहली ग़लती में संजीव ने दावा किया है,“सन 1949 में नेपाल के राजा ने नेपाल को भारत में विलय करने का प्रस्ताव दिया था। चाचा ने इन्कार कर दिया था।”
youngisthan.in द्वारा पब्लिश आर्टिकल में भी यही दावा किया गया है।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ट नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी 4 जून 2020 को एक ट्वीट कर यही दावा किया था। उन्होंने अग्रेज़ी में लिखा था,“आज ऐतिहासिक अभिलेखों से नेहरू की एक और मूर्खता सामने आती है: जब राणाओं का नेपाल पर शासन था, और नेपाल की राजशाही भारत में थी। भारत में अन्य राजाओं की तरह राणा शासकों ने 1950 में भारत में विलय की पेशकश की। नेहरू ने मना कर दिया !! एक परिवार में एक आनुवंशिक दोष चलता है – इसलिए परिवार के शासन को हटा दें।”
वहीं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब में भी नेहरू द्वारा नेपाल-भारत विलय के प्रस्ताव को ठुकराए जाने का ज़िक्र किया गया है।
फ़ैक्ट-चेक
नेपाल भारत विलय के विषय पर हमने कुछ ‘कीवर्ड’ की मदद से गूगल पर सर्च किया। हमें कुछ मीडिया हाउसेज़ द्वारा पब्लिश रिपोर्ट्स मिलीं।
प्रभा साक्षी द्वारा पब्लिश एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नेपाल का राजघराना “राणा” ने 1846 से 1951 तक राज किया। ये खुद को अलग-थलग रखने की नीति पर चलता था।
राजा त्रिभुवन, 1911 से नेपाल के राजा थे। राणा शासकों को शिकस्त देने के बाद 1951 में वे फिर से नेपाल के राजा बने। उन्होंने नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र के तहत लोकतंत्र की स्थापना की। नेपाली नेशनल कांग्रेस और नेपाली डेम्रोक्रेटिक पार्टी के विलय के बाद द् नेपाली कांग्रेस का गठन 1946 में हुआ।
The Quint ने अपनी रिपोर्ट में इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस यानी IDSA के सदस्य और जेएनयू में प्रोफेसर एसडी मुनि के हवाले से लिखा है,“नेहरू जानते थे कि उस समय अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों की राजनीति किस तरह चीन के खिलाफ थी और गोवा के विलय से भारत के खिलाफ़ कितना विरोध था इसलिए तकनीकी कारणों से नेपाल को भारत में मिलाने को नेहरू ने संभव नहीं माना था लेकिन नज़दीकी रिश्तों की बात 1950 की संधि में ज़रूर थी, जो राणा के समय में हुई थी।”
रिपोर्ट में पूर्व राजदूत डॉ लोकराज बरल को कोट किया गया है कि- “ये एक अफवाह है, राणा नहीं बल्कि राजा त्रिभुवन ने ये कहा था, लेकिन ये सिर्फ अफवाह भर थी। मुझे नहीं लगता कि राणा नेपाल को भारत में मिलाना चाहते थे. मुझे अभी तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है।”
न्यज़ 18 द्वारा पब्लिश रिपोर्ट के अनुसार शोधगंगा में प्रकाशित नेपाल और भूटान के प्रति भारत की विदेश नीति संबंधी एक लेख में कहा गया है कि राणाओं के शासन को खत्म करने के बाद त्रिभुवन नेपाल को भारत में विलय करना चाहते थे, लेकिन नेहरू ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। लेकिन प्रोफेसर मुनि स्पष्ट करते हैं कि त्रिभुवन की तरफ ऐसा कोई स्पष्ट प्रस्ताव नहीं था।
प्रोफेसर मुनि इस बारे में बताते हैं कि एक तो त्रिभुवन ने जब संघीय ढांचे का विरोध किया था तब भी किसी विलय की बात नहीं कही थी। दूसरे, भारत के विदेश मंत्रालय के पास ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है, जो यह साबित कर सके कि नेहरू के पास ऐसा प्रस्ताव आया था। ये महज़ अफवाहें रहीं।
इस बारे में जानकारी के लिए DFRAC ने इतिहासकार, लेखक और thecrediblehistory.com के संस्थापक अशोक कुमार पांडेय से बात की। उन्होनें DFRAC से कहा,“मुझे समकालीन इतिहास पढ़ते कहीं ऐसा कोई संदर्भ नहीं मिला जिसमें नेपाल के भारत से विलय का कोई प्रस्ताव हो। नेपाल इतिहास में कभी भी भारत का हिस्सा नहीं रहा। अंग्रेज़ी शासन में भी वह एक आज़ाद देश और अंग्रेज़ों का मित्र था। इस तरह की अफ़वाह सिर्फ़ नेहरू को बदनाम करने की गंदी मुहिम का हिस्सा हैं।”
निष्कर्ष:
DFRAC के इस फ़ैक्ट चेक से स्पष्ट है कि नेपाल-भारत विलय का प्रस्ताव एक अफ़वाह है क्योंकि कहीं किसी सरकारी दस्तावेज़ में इसका ज़िक्र तक नहीं, इसलिए सोशल मीडिया यूज़र्स द्वारा किया जा रहा दावा फ़ेक और भ्रामक है।
दावा: नेहरू ने ठुकराया था नेपाल-भारत विलय का प्रस्ताव
दावाकर्ता: सोशल मीडिया यूज़र्स
फ़ैक्ट चेक: फ़ेक और भ्रामक