
सोशल मीडिया पर राष्ट्रगान को लेकर यूज़र्स द्वारा दावा किया जा रहा है कि ‘जन गण मन’ को इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम की तारीफ़ में लिखा गया था। अरुण कुमार गौर नामक यूजर ने फ़ेसबुक पर एक किताब की तस्वीर के साथ पोस्ट लिखा, “सभी जानते हैं कि भारतीय राष्ट्र-गीत वस्तुतः रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा जार्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया स्तुति गान था। उक्त सम्पूर्ण गान दिल्ली साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक रवीन्द्रनाथ टैगोर की कृति “गीत-पँचशती” में उपलब्ध है, से लेकर मूल प्रतिलिपि आप सबके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। जिसे ज़ूम कर आसानी से पढ़ा जा सकता है। यह प्रतिलिपि भाई Krant M L Verma जी के सौजन्य से मुझे प्राप्त हुई है । #GaurYoung”
Rameshwar Basene फ़ेसबुक पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा लिखा गया पत्र शेयर किया है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से राष्ट्रगान बदलने की मांग की है। इस पोस्ट के मुख्यतः तीन बिन्दू हैं:
26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में बिना वोटिंग के ही “जन-गण-मन” को राष्ट्रगान स्वीकार किया गया था। ..
स्वामी ने सुभाषचंद्र बॉस जी के सुझाव का समर्थन कर इसके धुन से छेड़खान किए बिना ही 95% शब्दो को वैसा ही रखा जाए मात्र 5% शब्दो मे परिवर्तन किया जाए जो अंग्रेज़ राजा जार्ज पंचम के सम्मान में लिखा गया था। समय-समय पर तथाकथित राष्ट्रगान के विरुद्ध आवाज़ें उठती रही हैं| इन्हीं में एक राजीव दीक्षित भी थे जिन्होने तथाकथित राष्ट्रगान के सच को देश के सामने रखा।
अंग्रेज़ो की तारीफ़ राष्ट्रगान लिखने के कारण ही टैगोर को नोबल पुरस्कार मिला था, जिसे गीतांजली के नाम पर दिया गया।
यूट्यूब चैनल Technical Ayurveda पर राजीव दीक्षित का भाषण 4 जून 2019 को अपलोड किया गया है। इस यूट्यूब चैनल के लगभग साढ़े चार लाख सब्सक्राइबर्स हैं।
इसी तरह अन्य सोशल मीडिया यूज़र्स हैं, जो इसी तरह के मिलते-जुलते दावे के साथ पोस्ट किया है।

फ़ैक्ट चेक:
इस दावे की जांच-पड़ताल के लिए हमने गूगल पर सिंपल सर्च किया। हमें इस पर कई रिपोर्ट्स मिले। द् लल्लनटॉप की रिपोर्ट के मुताबिक़ रवींद्रनाथ टैगोर ने शान्तिनिकेतन में “जन गण मन” का पहला ड्राफ्ट 1908 में लिखा था।
इतिहासकार और लेखक अशोक कुमार पांडेय द्वारा संचालित thecrediblehistory.com के अनुसार राष्ट्रगान “जन गण मन” जितना पुराना है, उस पर विवाद भी लगभग उतना ही पुराना है। 27 दिसम्बर, 1911 को कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में दूसरे दिन का काम शुरू होने से पहले इसे गाया गया था।
आखिर क्यों शुरू हुआ यह विवादः
thecrediblehistory.com के मुताबिक़ इसे समझने कि लिए उस वक्त के राजनीतिक हालात पर नज़र डालना ज़रूरी है। जार्ज पंचम नये नये ब्रिटिश सम्राट बने थे और दिसम्बर में उन्होंने भारत की यात्रा की। कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाया गया। साथ ही बंगाल विभाजन के निर्णय को वापस लिया गया। ऐसे में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन के दूसरे दिन शिष्टाचार के तहत ब्रिटिश सम्राट की यात्रा के स्वागत का कार्यक्रम रखा गया था। ज्ञातव्य हो कि उस समय तक कांग्रेस ने देश की आज़ादी की मांग नहीं की थी।

राष्ट्रगान पर विवाद अंग्रेज़ी मीडिया द्वारा बिना समझे, ये रिपोर्ट करने की वजह से हुआ कि टैगोर ने जॉर्ज पंचम की तारीफ़ में गीत लिखा है।
इसकी वजह शायद उसी कार्यक्रम में जन-गण-मन के तुरंत बाद रामानुज चौधरी द्वारा जॉर्ज पंचम की तारीफ़ में समर्पित गीत का गाया जाना भी हो सकता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस आरोप का आधार ऐंग्लो इंडियन अंग्रेज़ी प्रेस की रिपोर्टें थीं। मसलन 28 दिसम्बर को ही समाचार पत्र The Englishman की रिपोर्ट में कहा गया कि सम्राट के सम्मान के लिये रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा विशेष रूप से रचित एक गीत के गायन के साथ अधिवेशन का कार्यक्रम शुरू हुआ। इससे एक क़दम आगे बढ़ते हुए The Statesman ने लिखा कि बंगाली कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सम्राट का स्वागत करने के लिये स्वरचित एक गीत गाया। भारत की घटनाओं के बारे में ब्रिटिश समर्थक ऐंग्लो-इंडियन प्रेस में ऐसी भ्रामक रिपोर्टें छपती रहती थीं। thecrediblehistory.com ने स्क्रोल के एक लेख का हवाले देकर लिखा है कि The Sunday Times ने रवीन्द्रनाथ को वंदेमातरम का रचयिता व जन गण मन को एक हिन्दी गीत कहा था।
बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक़ ‘अमृत बाज़ार पत्रिका’ में यह बात साफ़ तरीके से अगले दिन छापी गई। पत्रिका में कहा गया कि कांग्रेसी जलसे में दिन की शुरुआत गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित एक प्रार्थना से की गई।

thecrediblehistory.com के मुताबिक़ अख़बार The Bengalee ने इस पर सटीक रिपोर्ट पब्लिश की थी: “कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन महान बांग्ला कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित एक गीत के साथ शुरू हुआ। फिर सम्राट के प्रति विश्वसनीयता व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया। फिर बच्चों की एक मंडली ने सम्राट जार्ज पंचम के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए एक गीत गाया।”
राष्ट्रगान को लेकर तब से आज तक, यह विवाद चला आ रहा है कि कहीं टैगोर ने यह गाना अंग्रेज़ों की प्रशंसा में तो नहीं लिखा था?
बारहा एक मांग की जाती रही कि ‘भारत भाग्य विधाता’ को राष्ट्रगान से निकाल दिया जाए क्योंकि ‘भारत भाग्य विधाता’ उन्होंने जॉर्ज पंचम की तारीफ़ में कहा है। हालांकि बीबीसी हिन्दी की रिपोर्ट के मुताबिक़ टैगोर ने 1912 में ही स्पष्ट कर दिया कि ‘भारत भाग्य विधाता’ के केवल दो ही मतलब हो सकते हैं: देश की जनता, या फिर सर्वशक्तिमान ऊपर वाला—चाहे उसे भगवान कहें, चाहे देव। टैगोर ने ख़ारिज करते हुए साल 1939 में एक पत्र लिखा, ”मैं उन लोगों को जवाब देना अपनी बेइज़्ज़ती समझूँगा जो मुझे इस मूर्खता के लायक समझते हैं।”
thecrediblehistory.com ने लिखा है कि पुलिनबिहारी सेन ने 1937 में रवीन्द्रनाथ को एक पत्र लिखकर जानना चाहा कि क्या इस गीत का जार्ज पंचम से कोई सम्बन्ध था। उन्हें जवाब देते हुए टैगार ने पत्र लिखा,“उस वर्ष भारत सम्राट के आगमन का आयोजन चल रहा था। सरकार में प्रतिष्ठावान मेरे एक मित्र ने सम्राट के जयगान के लिये विशेष रूप से अनुरोध किया था। विस्मित होने के साथ ही मेरे मन में क्रोध भी उत्पन्न हुआ। उसी की प्रबल प्रतिक्रिया में मैंने जन गण मन गीत में उस भारत भाग्य विधाता के जय की घोषणा की, पतन-अभ्युदय-बंधुर-पन्था में युग-युग से धावित यात्रियों के जो चिरसारथी हैं, जो जनता के अन्तर्यामी पथपरिचायक हैं। मेरे राजभक्त मित्र भी समझ गये थे कि युग-युगान्तर के वह मानव भाग्य रथ चालक किसी भी हालत में पांचवें या छठे जार्ज नहीं हो सकते।”
जन गण मन को इस तरह किया गया स्वरबद्ध
आयरिश कवि जेम्स एच कज़िन्स ने 1918-19 में टैगोर को आंध्र प्रदेश आमंत्रित किया। टैगोर नें उनकी फ़रमाइश पर 28 फरवरी को जन मन गण को छात्रों की एक सभा में गाकर सुनाया। ये इतना पसंद किया गया है कि कज़िन्स की पत्नी मार्गरेट ने बाद में इसकी धुन बनाई। 1930 टैगोर ने सोवियत संघ की यात्रा के दौरान मास्को में पायोनियर्स कम्युन के अनाथ बच्चों के अनुरोध पर उन्हें यह गीत सुनाया था।
1937 में सुभाषचंद्र बोस ने पहली बार राष्ट्रगान के रूप में जन गण मन का प्रस्ताव रखा था। 5 जुलाई,1943 को आज़ाद हिन्द फौज के गठन की घोषणा की गई और उसी दिन पहली बार राष्ट्रगान के रूप में जन गण मन गाया गया।
तो इस तरह जन गण मन बना, राष्ट्रगान
1947 में स्वतंत्रता के समय राष्ट्रगान के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया था। उन दिनों जन गण मन के अलावा “वंदे मातरम्“ व “सारे जहाँ से अच्छा“ राष्ट्रीय गीतों के रूप में सम्मानित थे। स्वतंत्रता के तुरन्त बाद संयुक्त राष्ट्र के एक आयोजन के लिये वहाँ पहुँचे भारतीय प्रतिनिधि दल से एक राष्ट्रीय गीत के लिये अनुरोध किया गया। प्रतिनिधि दल ने भारत सरकार से सम्पर्क करते हुए जन गण मन की सलाह दी, जिसे सरकार ने मान लिया। देश मे राष्ट्रगान के बारे में विचार विमर्श जारी रहा। विशेषज्ञों की राय में जन गण मन की गायनयोग्यता सबसे अधिक थी। इसके अलावा एक हिन्दू देवी के रूप में वंदे मातरम् में देश की निहित धारणा अनेक मुसलमानों के लिये स्वीकारणीय नहीं थी। अंततः 24 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान सभा में इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रगान की मान्यता दी गई। साथ ही, तय किया गया कि आज़ादी के आन्दोलन में विशिष्ट भूमिका के कारण वंदे मातरम् को भी समान मर्यादा मिलेगी।
निष्कर्ष:
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान इंग्लैंड के राजा की तारीफ़ में नहीं लिखी थी, बल्कि एक मित्र द्वारा उनसे लिखने का अनुरोध किया गया तो वो प्रतिक्रिया में नाराज़ हो गए , और उसी मिज़ाज से जन गण मन गीत लिखा था। कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में राजनीतिक कारणों से जन गण मन के बाद रामानुज चौधरी द्वारा जॉर्ज पंचम की तारीफ़ में समर्पित गीत के गाये जाने से ही उस वक़्त की अंग्रेज़ी मीडिया और टैगोर विरोधियों ने इसे भ्रामक रूप से प्रचारित कर दिया।
दावा: राष्ट्रगान जार्ज पंचम की तारीफ़ में लिखा गया था
दावाकर्ता: सोशल मीडिया यूज़र्स व अन्य
फैक्ट चेक: फ़ेक और भ्रामक