भारत जैसे देश जिसकी मान्यता ‘वसुधैव कुटुंबकम’ यानी पूरा ‘विश्व एक परिवार’ की रही है। यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां और धर्मों की विविधता है। इतनी तमाम विविधताओं के बावजूद भी देश में एकजुटता, समरसता और भाईचारा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से खासतौर पर सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने के बाद से नफरत और घृणा को प्रसारित और प्रचारित किया जा रहा है। भारत जैसे में देश में लोगों के पहचान के मुद्दे धर्मों, संस्कृतियों और जातियों के आधार पर विविध हो सकते हैं, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में सोशल मीडिया पर दूसरे धर्मों, जातियों और संस्कृतियों के प्रति एक नफरत पैदा की जा रही है।
वर्ष 2014 में भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के चुनाव जीतने के बाद देश में अल्पसंख्यक धर्मों के खिलाफ अपराधों में भारी वृद्धि देखी गई है। नफरत केवल दिन-प्रतिदिन के परिदृश्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न सोशल मीडिया साइटों पर भी है, खासकर ट्विटर और फेसबुक पर।
हम पहले ही योगी देवनाथ, नवीन कुमार जिंदल आदि जैसे विभिन्न दक्षिणपंथियों द्वारा फैलाई गई अभद्र भाषा और दुष्प्रचार को कवर कर चुके हैं। इस बार DFRAC विशेष विश्लेषण में हमने मुख्य रूप से कुछ फेसबुक अकाउंट्स और पेजों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक हैं और अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए पेज शुरू किया है। इन पेजों पर एक विशिष्ट धर्म के प्रति घृणा और नफरत देखी जा सकती है।
ये फेसबुक पेज न केवल नफरत फैलाते हैं, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए उकसाते हैं और भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को बर्बाद करने की कोशिश करते हैं।
आइए इन अकाउंट्स का गहराई से विश्लेषण करते हैं और इनके नफरत फैलाने के पैटर्न पर ध्यान देते हैं-
- ये अकाउंट और पेज अलग-अलग धार्मिक समूहों के लोगों की भावनाओं को कुछ ऐसे शब्दों से आहत करते हैं, जो या तो बोले जाते हैं या लिखे जाते हैं या संकेत या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा किया जाता है। साथ ही, यदि कोई उस वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान या अपमान करने का प्रयास करता है।
- ईसाई धर्म का प्रमुख त्यौहार क्रिसमस है। इस पवित्र त्यौहार के दौरान रोशनी में जगमगाते क्रिसमस ट्री की तुलना में एक लड़की की तस्वीर मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ती हुई दिखाई गई है। इस पोस्टर में कहा गया है कि आर्टिफिशियल ट्री पर पैसे खर्च करने की बजाय जरूरतमंदों को पैसा दिया जाना चाहिए।
- प्रसिद्ध अभिनेता, गायक दिलजीत दोसांझ की तस्वीर का उपयोग करके और उन्हें खालिस्तानी कहकर सिख समुदाय के दूसरे लोगों के बीच तुलना की जाती है।
- इस पेज पर स्पष्ट रूप से भारत के इतिहास को फेक कहा जा रहा है, क्योंकि मुगलों ने इस पर शासन किया था, इसलिए लोगों को उनकी मान्यताओं पर सवाल उठाना पड़ा।
- एक अन्य पोस्ट में पेज पर उन लोगों को भिखारी बुलाया जा रहा है जो यीशू का प्रचार करते हैं।
- आरएसएस समर्थक होने के नाते यह एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ बनाने की कोशिश कर रहा है।
- ऐसे पेजों और अकाउंट्स के माध्यम से नफरत दिखाने के लिए आम तौर पर, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच एक विवाद पैदा किया जाता है, जो पर्याप्त रूप से घृणास्पद या चरमपंथी होने पर समूह के आस्था पर भी हमला करता है।
- एक धर्म को दूसरे से दूर करने के लिए सचित्र प्रतिनिधित्व का उपयोग किया जाता है, चित्र में प्रयुक्त “अब्दुल” नाम सीधे हमें बताता है कि पेज किस धर्म को टारगेट कर रहा है।
- कुछ मुहावरों और शब्दों का इस्तेमाल ऐसे किया जाता है जैसे- “मुल्ला” की जगह “बुल्ला” शब्द और मुस्लिम समुदाय को गाली देने के तौर पर “कटुआ” को “बटुआ” के रुप में लिखा जाता है।
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- पूरे परिदृश्य को एक मंदिर-मस्जिद का दृष्टिकोण देने के लिए पुरानी रणनीति का उपयोग किया जाता है, एक मस्जिद के टूटे हिस्से को मंदिर बताया जाता है। इस तरह के पोस्टों से विभिन्न धार्मिक समूहों के लोगों के दिमाग से खेलना आसान है।
- यह सब न केवल आम लोगों को भड़काने तक सीमित था, बल्कि पेज द्वारा जाने-माने राजनेताओं का भी मजाक बनाते हुए उन्हें निशाना बनाया गया।
निष्कर्ष:
इस तरह की तस्वीरें देश की अखंडता को खराब करने और विभिन्न समूहों के लोगों की भावनाओं को भड़काने के उद्देश्य से की जाती है, जिससे देश के सामाजिक वातावरण को दूषित किया जा सके।
उपरोक्त कई चित्रों में हमने पाया है कि कुछ अपशब्दों का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से किया गया है, तो वहीं परोक्ष रूप से वर्तनी में कुछ परिवर्तन करने से जैसे मुल्ला शब्द बुल्ला बन जाता है और कटुआ शब्द बटुआ बन जाता है।
हमने यह भी देखा कि नफरत केवल आम लोगों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें कुछ जाने-माने राजनेता भी शामिल थे।