सोशल मीडिया देश के वंचित समुदायों, दूर दराज के इलाक़ों में रहने वाले लोगों और ग़रीब तबकों के लिए एक कारगर औज़ार की तरह है, जिससे वह अत्याचारों और प्रताड़नाओं के ख़िलाफ़ अपने इंसाफ़ की लड़ाई को पुरजोर तरीक़े से लड़ रहे हैं। ग्रामीण अंचलों में पहले होने वाली घटनाएं पहले अख़बारों के क्षेत्रीय पन्नों तक ही सीमित रह जाती थीं, उन्हें मुख्य धारा की मीडिया में प्रमुखता नहीं मिल पाती थी। लेकिन सोशल मीडिया ने इन वंचित समुदायों को ताक़त दी है, जिससे वह अत्याचार के विरूद्ध आवाज़ उठा रहे हैं।
दलित और पिछड़े वर्गों के लोगों ने भी सोशल मीडिया की ताक़त को समझा और यहां सक्रिय हो गए। समाज के मुद्दों पर मुखर होकर अपनी बात रखने लगे। भारतीय मीडिया में दलितों और पिछड़ों की उपेक्षा के लगातार आरोप लगते रहे हैं। लोग सवाल तो ये भी पूछते हैं कि आखिर मुख्यधारा के चैनलों और अख़बारों में कोई दलित या पिछड़े समुदाय का व्यक्ति संपादक या फिर प्रमुख पदों पर क्यों नहीं पहुंच पाया। इन उभरते सवालों के बीच दलितों और पिछड़ों ने सूचना क्रांति के क्षेत्र में हो रहे ऐतिहासिक परिवर्तनों के बीच सोशल मीडिया, वेब मीडिया और यूट्यूब का भरपूर इस्तेमाल करते हुए देश में ‘बहुजन मीडिया’ का संपकल्पना बना ली।
इन मीडिया संस्थानों और पत्रकारों द्वारा समाज के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जा रहा है। ‘दलितों के बरात में घोड़ी चढ़ने से रोकने’ की ख़बर पहले क्षेत्रीय ख़बर होती थी, लेकिन आज के वक़्त में यह घटना होते ही सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगता है। सरकारों को तुरंत जवाब देना पड़ जाता है। दलितों के साथ छुआछुत और भेदभाव की ख़बर पहले क्षेत्रीय अख़बारों के लिए समाचार सामग्री हुआ करती थी, लेकिन आज सोशल मीडिया के ज़रिए इन ख़बरों पर राष्ट्रीय पैमाने पर बहस होती है। इसका उदाहरण ऐसे देख सकते हैं कि उत्तराखंड के चंपावत में दलित भोजनमाता प्रकरण में सोशल मीडिया के जरिए बने दबाव पर इंसाफ़ मिल सका।
लेकिन सोशल मीडिया अगर इन नेताओं और पत्रकारों को अपनी आवाज़ उठाने का मौक़ा देता है, तो जातिवादी मानसिकता वाले अपराधियों को भी बराबर के मौक़े देता है। सोशल मीडिया पर दलित-पिछड़ों और वंचितों की आवाज़ उठाने पर लोगों को गालियां दी जाती हैं, उनके लिए अपशब्दों का इस्तेमाल कर तमाम तरह संज्ञाएं दी जाती हैं।
हम इस लेख में इन ‘बहुजन’ नेताओं और पत्रकारों के ख़िलाफ़ नफ़रत और दुर्भावना का हम विश्लेषण प्रदान करेंगे। इस लेख में ट्वीटर से डाटा का संग्रह और उसका विश्लेषण किया जा रहा है।
प्रमुख व्यक्तियों की प्रोफाइलः
बीएसपी सुप्रीमो मायावती, आज़ाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आज़ाद, कांग्रेस के डॉ उदित राज, मूकनायक की संपादक मीना कोटवाल सहित सोशल मीडिया पर सक्रिय तमाम नेताओं और पत्रकारों सहित अन्य लोगों के ख़िलाफ़ अपशब्द और गाली-गलौज होती रहती है। इन्हें सोशल मीडिया के यूजर्स तमाम तरह की संज्ञाए देते रहते हैं।
सोशल मीडिया यूजर्स और अकाउंटः
सोशल मीडिया पर यूजर्स @akashkrpandey20 ने ज्यादातर आक्रामक प्रकृति में ट्वीट किया है। इनके हैंडल से लगातार अपशब्द और गालियां दी जाती रही हैं। उसके बाद @dkthaku99929226 और @shivash81787624 जैसे सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं, जिन्होंने गाली-गलौज की है।
ट्वीट्सः
यहां उन ट्वीटर के पोस्ट का लिंक डाला गया है, जिसमें दलित कार्यकर्ताओं और नेताओं के खिलाफ अपशब्द कहे गए हैं। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप अपमानजनक पोस्टों को पढ़ सकते हैं।
- https://twitter.com/raypavan42/status/1422957888843116552
- https://twitter.com/Ankitmi10190078/status/1404995745229393921
- https://twitter.com/NISHANT14007960/status/1481352530852716544
- https://twitter.com/SkumarSanjay5/status/1432941788591898631
- https://twitter.com/LovelySinghcho2/status/1401772215620624388
- https://twitter.com/rana300614/status/1397201900127330307
अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाले यूजर्सः
नीचे दिए गए ग्राफ में हमने उन यूजर्स का विवरण पेश किया है, जिन्होंने सबसे ज्यादा बार अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है। हिन्दी में “चमार” शब्द का इस्तेमाल @dheeren13112143 और @RakeshpdmPandit नामक यूजर ने सबसे ज्यादा 6-6 बार किया है। इसके बाद @divyarnc51 ने 5 बार चमार शब्द का इस्तेमाल कर ट्वीट या फिर रिप्लाई किया है। वहीं अंग्रेजी वाली पोस्टों में “Chamar” शब्द का इस्तेमाल सबसे ज्यादा @crazysujeetluv ने 7 बार किया है। इसके बाद @raypavan42 ने 6 बार किया है। वहीं ‘भीमटा’ शब्द का इस्तेमाल @araksanavirodhi और @varrshrr ने तीन-तीन बार किया है।
सबसे ज्यादा बार मेंशन किए गए अकाउंट्सः
जिन खातों का ज्यादातर आक्रामक ट्वीट्स में मेंशन किया गया था, उनमें भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद (@BhimArmyChief) हैं। इसके बाद कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद उदित राज (@Dr_Uditraj) हैं। इन दोनों नेताओं के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामबिलास पासवान को ज्यादा बार मेंशन किया गया है। आपको बता दें कि दलित-पिछड़ों और आदिवासियों के मुद्दों पर सबसे मुखर होकर चंद्रशेखर आजाद और उदित राज उठाते रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर सक्रिय दलित और पिछड़े समाजसेवियों को भी काफी टारगेट करते हुए ट्वीट किए जाते रहे हैं। जिन यूजर्स पर सबसे ज्यादा भद्दी-भद्दी टिप्पणियां की गई, उनका ग्राफ नीचे दिया गया है।
सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए गए अपशब्दः
दलित नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपशब्दों के कुछ कीवर्ड्स हमें कई ट्वीट किए गए पोस्टों के माध्यम से पता चला। इन अपशब्दों को ट्वीटर पर सर्च करने के बाद हमने उनकी संख्या का पता लगाने की कोशिश की। इनमें ‘चमार’ का ज्यादा इस्तेमाल किया गया है। करीब 300 से ज्यादा बाद सोशल मीडिया के यूजर्स ने चमार शब्द का इस्तेमाल किया है। सोशल मीडिया के यूजर्स ने चमार जैसे अपशब्दों का इस्तेमाल दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं को गाली देने के लिए इस्तेमाल किए गए थे।
इसके बाद दलित, भंगी, भीमटा, Dalit, Chamar, Bhimta शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया। इन शब्दों को 50 से ज्यादा बार इस्तेमाल किया गया। आपको बता दें कि हमनें इन अपमानजनक शब्दों को सोशल मीडिया यूजर्स द्वारा इस्तेमाल करने के बाद इनके इस्तेमाल की संख्या ज्ञात की है।
वर्डक्लाउडः
इस वर्डक्लाउड में हमने सोशल मीडिया यूजर्स द्वारा दलित नेताओं सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल किए अपशब्दों का एक वर्डक्लाउड बनाया है। इनमें पत्रकारिता के आदर्श मापदंडों को देखते हुए गाली वाले शब्दों के बीच में # या फिर @ का इस्तेमाल किया गया है और बाकी के शब्दों को ऐसे ही रखा गया है।
जातिसूचक गालियों पर क्या है कानून?
लाइव लॉ की खबर के अनुसार “चमार” शब्द का इस्तेमाल करना कानून जुर्म है। यदि अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य को लोक स्थान पर अपमानित या शर्मिन्दा करने के आशय से “चमार” कहा गया था, तो यह सचमुच अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के अन्तर्गत अपराध है। क्या शब्द “चमार” अपमानित करने या शर्मिन्दा करने के आशय से प्रयुक्त किया गया था, उस सन्दर्भ में अर्थान्वयित किया जायेगा जिसमें यह प्रयुक्त हुआ था। यह बात स्वरन सिंह बनाम स्टेट धू स्टैंडिंग काउंसिल, 2008 के मामले में कही गई है।
इसके अलावा जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर भारतीय दंड विधान की कई धाराओं में केस दर्ज किया जा सकता है। नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक- “जातिसूचक टिप्पणियों के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धाराएं लगती हैं। धारा 3(1) के अनुसार, SC या ST वर्ग से ताल्लुक रखने वाले किसी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की नीयत से जान-बूझकर की गई टिप्पणियां या दी गईं धमकियां अपराध के दायरे में आती हैं। इसकी धारा 18A के तहत केस दर्ज होने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं पड़ती। बिल में यह भी कहा गया है कि जांच अधिकारी को गिरफ्तारी से पहले किसी की मंजूरी नहीं लेनी होगी। SC/ST ऐक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार व्यवस्था दी है।”
निष्कर्षः
हमारे विश्लेषण से ये बात निकलकर सामने आती है कि सोशल मीडिया पर दलित नेताओं, सोशल एक्टिविस्टों और समाजसेवियों के खिलाफ अपशब्दों और गालियों का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है। इसकी वजह दलितों के मुद्दों पर मुखर होकर अपनी बात कहना है। कई जगहों पर हमने पाया कि कुछ यूजर्स अपशब्दों में सांकेतिक चिन्हों का इस्तेमाल कर रहे थे। उदाहरण के तौर पर अगर उन्हें Chamar लिखना था, तो उन्होंने सांकेतिक चिन्हों का इस्तेमाल करते हुए Ch@m@r लिखा था। हमारा सुझाव है कि ट्वीटर पर अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाले यूजर्स के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, जिससे कि इस तरह की अपमानजनक गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके।
स्पष्टीकरण- चमार सहित दूसरे अपशब्दों का इस्तेमाल करना संवैधानिक रुप से गलत है। इस स्टोरी में इन शब्दों को इसलिए लिखा गया है, क्योंकि इन शब्दों का इस्तेमाल करने वाले यूजर्स को बेनकाब करना था, जिन्होंने इन शब्दों का सोशल मीडिया पर एक्टिव नेताओं और कार्यकर्ताओं की मानहानि और उनके अपमान के लिए किया था। हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारा मकसद किसी की मानहानि या उनको नीचा दिखाना नहीं है।