सोशल मीडिया पर फर्जी पहचान बनाकर फेक और हेट फैलाने वाले लोग समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुके हैं। DFRAC की इस विशेष रिपोर्ट में हम एक ऐसे शख्स को उजागर कर रहे हैं, जो जिसने एक प्रोफेसर का नकली मुखौटा धारण कर नफरत और फेक न्यूज फैलाकर समाज में धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण को भी हवा दे रहा है। इसके पोस्ट्स और विचार न केवल झूठी जानकारी फैलाते हैं, बल्कि नफरत का जहर भी घोल रहे हैं। हम इस रिपोर्ट में बताएंगे कि कैसे इस शख्स ने बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी की फोटो और नाम का इस्तेमाल कर पहले सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा फॉलोवर्स हासिल किए और फिर बाद में प्रोफेसर सुधांशु के नाम से सक्रिय है और नफरत फैलाने के कारोबार में लिप्त है। इस रिपोर्ट में हम इसके ऑनलाइन लोगों पर पड़ रहे प्रभावों पर भी प्रकाश डालेंगे। रिपोर्ट के मुख्य बिन्दू हैः
- कौन है प्रोफेसर सुधांशु?
- BJP नेता सुधांशु त्रिवेदी के नाम और फोटो का दुरुपयोग
- प्रो. सुधांशु के हेट कंटेंट का विश्लेषण और प्रभाव
- प्रोफेसर सुधांशु के फेक और भ्रामक न्यूज का विश्लेषण
- एक्स (ट्विटर) की पॉलिसी का उल्लंघन
1.कौन है प्रोफेसर सुधांशु?
प्रोफेसर सुधांशु नामक यह यूजर सोशल मीडिया साइट एक्स पर काफी सक्रिय है। इस यूजर के एक्स हैंडल पर वर्तमान में 4 लाख 9 हजार फॉलोवर्स हैं, जो उसकी व्यापक पहुंच और प्रभाव को दर्शाता है। उन्होंने अपने एक्स बायो में खुद को “व्यंग के प्रोफेसर” (Prof. of Satire) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हालांकि, प्रोफेसर सुधांशु की वास्तविक प्रोफेसर के रूप में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है और उनका अकादमिक या पेशेवर बैकग्राउंड भी अस्पष्ट है। सुधांशु अपनी पहचान को लेकर दावा करते हैं कि वे हिंदू विरोधी भावनाओं पर तीखे और विवेकपूर्ण प्रहार करते हैं और उनके पोस्ट तथ्यों पर आधारित होते हैं। लेकिन उनकी ऑनलाइन गतिविधियों ही उनके इस दावे की पोल खोलती हैं, जब उनकी ऑनलाइन एक्टिविटी का गहराई से विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि वह लगातार फेक और भ्रामक सूचनाएं शेयर करते रहे हैं। जिसका इस रिपोर्ट में आगे विस्तृत विश्लेषण किया गया है।
2. BJP प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के नाम और फोटो का दुरुपयोगः
प्रोफेसर सुधांशु एक चालाक सोशल मीडिया यूजर्स है। इस यूजर ने सबसे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के नाम और फोटो का इस्तेमाल किया। इस यूजर ने शुरु में अपने नाम के आगे पैरोडी या सटायर (व्यंग) लिखा था, लेकिन बाद में प्रोफेसर सुधांशु कर लिया। हमने इस यूजर का आर्काईव चेक कर इसके नाम बदलने की हिस्ट्री को ट्रैक किया, जिसे यहां दिए ग्राफिक्स में देखा जा सकता है।
हमारे विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया कि जब ‘प्रो. सुधांशु’ जब अपने एक्स हैंडल को ‘सुधांशु त्रिवेदी’ के नाम से चला रहे थे, तो उसके फॉलोवर्स की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई। हमने सोशल ब्लेड (Socialblade) वेबसाइट का उपयोग कर इस अकाउंट के फॉलोवर्स में वृद्धि के पैटर्न का अध्ययन किया। हमने पाया कि जनवरी 2024 में जहां इस हैंडल के लगभग 96 हजार फॉलोवर्स थे, तो यह अगले कुछ महीनों में यह संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 4 लाख 6 हजार तक पहुंच गई। नीचे दिए गए ग्राफ में फॉलोवर्स की इस तीव्र वृद्धि को देखा जा सकता है।
कॉमन यूजर्स ने प्रो. सुधांशु को बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी समझाः
प्रोफेसर सुधांशु के सोशल मीडिया पर बीजेपी प्रवक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी के नाम और फोटो का उपयोग करने के बाद, कई यूजर्स भ्रमित हो गए कि यह बीजेपी प्रवक्ता का वास्तविक एक्स (X) हैंडल है। इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न मौकों पर यूजर्स ने इस हैंडल को सुधांशु त्रिवेदी का समझते हुए ट्वीट किए। हमारे विश्लेषण में यह भी पाया गया कि वर्ष 2015 से लोग प्रोफेसर सुधांशु को सुधांशु त्रिवेदी समझते आ रहे हैं, जिसके उदाहरण के तौर पर एक यूजर के कमेंट को देखा जा सकता है।
प्रोफेसर सुधांशु की फेक पहचान के झांसे में आम यूजर्स कैसे आते हैं, यह इन दो टीवी चैनलों की डिबेट के क्लिप्स से आसानी से समझा जा सकता है, जिनमें बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी मौजूद थे। टाइम्स नाउ के ट्विटर हैंडल पर 7 सितंबर 2016 को एक क्लिप पोस्ट की गई थी, वहीं आज तक के हैंडल से 4 जुलाई 2019 को एक न्यूज़ क्लिप पोस्ट की गई। इन दोनों क्लिप्स पर रिप्लाई करते हुए कई यूजर्स ने प्रोफेसर सुधांशु को सुधांशु त्रिवेदी समझते हुए इस हैंडल को मेंशन किया था, जबकि यह देखा जा सकता है कि आज तक के ट्वीट में सुधांशु त्रिवेदी के आधिकारिक अकाउंट को सही ढंग से टैग किया गया था।
इसके अलावा कई यूजर्स ने अलग-अलग वर्षों में प्रो. सुधांशु को सुधांशु त्रिवेदी का हैंडल समझकर ट्वीट किया है, जिसे यहां दिए गए ग्राफिक्स में देखा जा सकता है।
3. सुधांशु के हेट कंटेंट का विश्लेषण और प्रभावः
हमारे विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया कि जब ‘प्रो. सुधांशु’ जब अपने एक्स हैंडल को ‘सुधांशु त्रिवेदी’ के नाम से चला रहे थे, तो उसके फॉलोवर्स की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई। हमने सोशल ब्लेड (Socialblade) वेबसाइट का उपयोग कर इस अकाउंट के फॉलोवर्स में वृद्धि के पैटर्न का अध्ययन किया। हमने पाया कि जनवरी 2024 में जहां इस हैंडल के लगभग 96 हजार फॉलोवर्स थे, तो यह अगले कुछ महीनों में यह संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 4 लाख 6 हजार तक पहुंच गई। नीचे दिए गए ग्राफ में फॉलोवर्स की इस तीव्र वृद्धि को देखा जा सकता है।
धार्मिक भेदभाव और नफरत: उनके ट्वीट्स में खास तौर पर एक समुदाय के खिलाफ अपमानजनक और भेदभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया गया है। जैसे- एक ट्वीट में उड़ीसा के संबलपुर जिले में किए गए एक नाटक के छोटे से क्लिप को शेयर कर उन्होंने लिखा, “भाईचारा देख रहे हो मुल्लो का!!” वहीं वक्फ बोर्ड बिल पर सुझाव भेजने के लिए मुस्लिम द्वारा की जा रही पहल के एक वीडियो को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा, “जेहादियों का जेहाद वक़्फ़ बोर्ड के लिए चल रहा है।”
सामुदायिक ध्रुवीकरण: उनके एक ट्वीट में “पाकिस्तान-बांग्लादेश भेज देना चाहिए?” जैसे सवाल, विशेष समुदाय को निशाना बनाया हैं।
भड़काऊ भाषा: प्रोफेसर सुधांशु के पोस्ट में अक्सर उग्र और उत्तेजक भाषा का इस्तेमाल किया गया है, जो धार्मिक और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश करती है। इसके लिए लिए फेक और भ्रामक सूचनाओं का सहारा लेते हैं। उदाहरण के तौर देखा जा सकता है कि बांग्लादेश में सेक्स वर्कर्स और ट्रांसजेंडर्स को प्रताड़ित किए जाने के वीडियो को उन्होंने धार्मिक और सांप्रदायिक एंगल देते हुए लिखा, “हिजाब और बुरका पहनो या बांग्लादेश छोड़ दो! बांग्लादेश में बाजार में सरेआम हिन्दू लड़कियों को टारगेट किया जा रहा। हिन्दू लड़कियों को नॉर्मल कपड़े पहनने पर निशाना बनाया जा रहा है।”
4. प्रोफेसर सुधांशु के फेक और भ्रामक न्यूज का विश्लेषणः
प्रोफेसर सुधांशु सोशल मीडिया फेक न्यूज और भ्रामक सूचनाएं शेयर करने का आदती है। इस अकाउंट ने कई बार समाज में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश करते हुए फेक और भ्रामक सूचनाएं फैलाई गई हैं। यहां हम प्रोफेसर सुधांशु के अकाउंट से शेयर की गई फेक और भ्रामक सूचनाओं का फैक्ट चेक प्रदान कर रहे हैं।
फेक/भ्रामक न्यूज-1
प्रोफेसर सुधांशु ने दावा किया कि 2007 में भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीता था, तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बजाय सोनिया गांधी के साथ भारतीय क्रिकेट टीम का फोटो शूट करवाया गया था।
फैक्ट चेकः
DFRAC की टीम ने जांच में पाया कि सुधांशु का दावा भ्रामक है। 2007 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भारतीय क्रिकेट टीम का फोटोशूट करवाया गया था।
फेक/भ्रामक न्यूज-2
प्रोफेसर सुधांशु ने एक वीडियो शेयर कर दावा किया था कि राजस्थान के डीडवाना में सरफराज नाम के एक दुकानदार ने रिचार्ज करवाने आई हिन्दू छात्रा के साथ छेड़खानी की और उसे I LOVE YOU कहने के लिए कहा।
फैक्ट चेकः
डीडवाना-कुचामन पुलिस ने इस मामले पर ट्विट कर बताया था कि आरोपी दुकानदार का नाम ओमप्रकाश था। इसलिए सुधांशु द्वारा ओमप्रकाश को सरफराज बताकर इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई थी।
Link- Fact Check
फेक/भ्रामक न्यूज-3
प्रोफेसर सुधांशु ने एक वीडियो शेयर किया था। इस वीडियो में मुस्लिमों को बिजली विभाग कर्मचारियों के साथ बहस करते और उन्हें धमकी देते हुए देखा जा सकता है। सुधांशु ने इस वीडियो को भारत का बताया था।
फैक्ट चेकः
यह वीडियो भारत का नहीं है। यह पाकिस्तान के कराची का वीडियो है और यह हाल-फिलहाल का नहीं बल्कि साल 2020 का वीडियो है।
फेक/भ्रामक न्यूज-4
बांग्लादेश में हाल ही मचे उथल-पुथल के बाद प्रोफेसर सुधाशु ने बांग्लादेश में सड़क पर मार्च निकाले जाने का वीडियो शेयर किया था। इस वीडियो में लोगों को भगवा कपड़ों में देखा जा सकता है। वीडियो पोस्ट कर सुधांशु ने लिखा था, “ढाका की सड़कों पर भगवा सैलाब”
फैक्ट चेकः इस वीडियो को बांग्लादेश के एक फेसबुक अकाउंट पर 1 सितंबर 2023 को पोस्ट किया गया था। जिसके साथ बताया गया था कि यह वीडियो फहमी गुलंदाज बाबेल के नेतृत्व में छात्र लीग के सदस्यों द्वारा आयोजित एक रैली का है।
फेक/भ्रामक न्यूज-5
प्रोफेसर सुधांशु ने एक न्यूज क्लिप शेयर किया। इस न्यूज क्लिप के साथ उन्होंने सवाल पूछते हुए यह लिखा कि अगर कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में सत्ता में आती है तो वह सभी आतंकियों को रिहा कर देगी।
फैक्ट चेकः
प्रोफेसर सुधांशु द्वारा वर्ष 2018 में कांग्रेस नेता सगीर सईद खान के विवादित बयान की न्यूज कवरेज वाली क्लिप शेयर की गई है। यह हाल-फिलहाल की क्लिप नहीं है। वहीं कांग्रेस ने 2018 में सगीर खान के बयान का खंडन किया था।
निष्कर्षः
प्रोफेसर सुधांशु के निष्कर्ष के रूप में यह स्पष्ट होता है कि उनकी गतिविधियाँ, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर हेट स्पीच, भड़काऊ पोस्ट और फेक न्यूज फैलाना, गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्याओं को जन्म देती हैं। उनके द्वारा नफरत और भ्रामक जानकारी का प्रसार न केवल समाज में विभाजन और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि यह एक्स (ट्विटर) की नीतियों और कानूनों का भी सीधा उल्लंघन करता है।