सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में देखा जा सकता है कि लुप्पो लिखे पैकेट को खोलकर निकाले गए केक के अंदर से टैबलेट निकल रहा है। यूज़र्स दावा कर रहे हैं कि इस टैबलेट से बच्चे लकवाग्रस्त हो जाते हैं। मुस्लिमों द्वारा बनाया गया यह केक सिर्फ़ हिन्दू छेत्र में बेचा जाता है।
योगीआदित्यनाथफैन(डिजिटल योद्धा)गोडसे का भक्त नामक ट्विटर अकाउंट द्वारा वीडियो ट्वीट कर कैप्शन दिया गया है कि- “विधर्मी जिहादियों द्वारा बनाया गया एक नया केक बाजार में आ गया है। ल्यूपो कंपनी के केक के अंदर एक टेबलेट है जो बच्चों को लकवाग्रस्त कर देती है, कृपया इस वीडियो को अपने दोस्तों को भेजें, केवल हिंदू क्षेत्र में बेचा जाता है। अपने बच्चों का ख्याल रखें और अपना ख्याल रखें”
अन्य यूज़र्स द्वारा भी वीडियो शेयर कर ऐसा ही दावा किया गया है।
फ़ैक्ट-चेक:
वायरल वीडियो की हकीकत जानने के लिए DFRAC टीम ने पहले वीडियो को कुछ की-फ़्रेम में कन्वर्ट किया, फिर उन्हें रिवर्स सर्च किया। इस दौरान हमें एक मलयालम वेबसाइट janayugomonline द्वारा 16 नवम्बर 2021 को पब्लिश इस बाबत एक आर्टिकल मिला, जिसके शीर्षक का अनुवाद लगभग इस तरह है, “हिंदू आबादी को नियंत्रित करने के लिए केक में बाँझपन की गोली; सच्चाई जानें”
इस आर्टिकल में बताया गया है कि यह 2019 में एक तुर्की खाद्य निर्माण कंपनी द्वारा जारी किया गया वीडियो है जो वर्तमान में मुस्लिम विरोधी और धार्मिक घृणा पैदा करने के उद्देश्य से शेयर किया जा रहा है। तुर्की की कंपनी ने इसके खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई की थी।
वहीं हमें यूट्यूब चैनल Hanan Cohen पर यही वीडियो 4 नवंबर 2019 को अपलोड मिला, जिसके डिस्क्रिप्शन में कहा गया है कि यदि आपके पास इस बारे में कोई नई जानकारी है, तो कृपया मुझे [email protected] पर लिखें। साथ ही आगे बताया गया है कि वीडियो को कई बार देखने के बाद मुझे ऐसा लगता है कि वीडियो बनाने वाले व्यक्ति को पता है कि गोलियां कहां हैं और वह हमें दिखा रहा है कि उसने उन्हें कहां रखा है। यदि आप केक में गोलियाँ खोजते हैं, तो आप आमतौर पर केक को तोड़ देते हैं। इस वीडियो में शख्स सावधानी से केक को अलग कर रहा है।
वीडियो में लुप्पो कोकोनट क्रीम केक तुर्की कंपनी सोलेन का उत्पाद है। तुर्की के फ़ैक्ट-चेक वेबसाइट Teyit ने उत्पाद की निर्माण प्रक्रिया के प्रयोगशाला परिणामों तक पहुंचने के बाद 2019 में वायरल दावे को खारिज कर दिया था।
निष्कर्ष:
DFRAC के इस फ़ैक्ट-चेक से सप्ष्ट है कि वायरल वीडियो तीन साल पुराना और फे़क है इसलिए सोशल मीडिया यूज़र्स का दावा ग़लत है।