भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में धर्म, जाति, लिंग या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करता है और सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार को उल्लेखित करता है। लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कई पार्टियां संविधान की इस कसौटी से अलग जातिय और धार्मिक पहचान के तौर पर स्थापित हो रही हैं। यह स्थिति भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति बनाम धार्मिकता की बाइनरी में तेजी से ध्रुवीकृत होती जा रही है। राजनीतिक तौर पर हो रहे ध्रुवीकरण का असर समाज पर हो रहा है और यह सोशल मीडिया पर भी दिख रहा है। अलग धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान लिए लोग ज्यादा निशाने पर हैं। सोशल मीडिया पर हो रहा यह ध्रुवीकरण इस लिहाज से भी खतरनाक हो जाता है, क्योंकि यहां फैल रही भड़काऊ वीडियो और फोटो कब और कहां विस्फोटक रुप ले लेगी, यह कोई नहीं जानता है। कई जगहों पर दंगे और हिंसक टकराव इन्हीं भड़काऊ, नफरती और फेक वीडियो के कारण हो चुकी हैं।
सोशल मीडिया को लेकर चिंताजनक स्थिति तब और ज्यादा गहरी हो जाती है, जब लगभग सभी लोगों की पहुंच इन माध्यमों तक होने लगी है। केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आंकड़े के मुताबिक भारत में व्हाट्सएप यूजर 53 करोड़, यूट्यूब यूजर 44.8 करोड़, फेसबुक यूजर 41 करोड़, इंस्टाग्राम यूजर 21 करोड़ और ट्विटर पर 1.75 करोड़ यूजर हैं। सरकारी आंकड़े के ही मुताबिक भारत में करीब 26 करोड़ परिवार रहते हैं। यानी लगभग सभी परिवारों की सोशल मीडिया तक किसी ना किसी माध्यम से पहुंच है। जब भी सोशल मीडिया पर कोई भी हेट या भड़काऊ सामग्री, वीडियो या फोटो वायरल होता है, तो वह सीधे तौर पर सभी परिवारों तक पहुंच और असर की क्षमता रखता है। ऐसे में सोशल मीडिया पर भड़काऊ और नफरती बयानों वाले वीडियो और फोटो सभी लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। भारत सरकार का खुद मानना है कि ट्विटर, फेसबुक और वॉट्सऐप सहित तमाम सोशल मीडिया साइट्स से देश में नफरत फैलती है।
सरकार का कहना है कि कई मौकों पर देश में खराब हालात के दौरान भावनाएं भड़काने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल किया गया। वर्ष 2015 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी ने एक प्रश्न के जवाब में कहा- ‘समय-समय पर ट्विटर, फेसबुक, ई-मेल, ब्लॉग्स और वॉट्सऐप के जरिये देश में नफरत फैलाने की कई मुहिम चलाई गई हैं जो सरकार के संज्ञान में हैं।’ वहीं सोशल मीडिया पर फैलते हेट को लेकर यूनेस्को ने साल 2012 से 2016 के बीच दुनियाभर में सोशल मीडिया और इंटरनेट से युवाओं में फैलते हिंसात्मक विचार और अतिवादिता का अध्ययन किया था। इस रिपोर्ट को 2017 में प्रकाशित किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया पर धार्मिक और सामाजिक विभाजनकारी कंटेंट लिखा जाता है और इसका तेजी के साथ प्रचार और प्रसार किया जाता है।
भारत में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा लगातार भड़काऊ बयान दिए जाते रहे हैं। इन बयानों को सोशल मीडिया के माध्यम से तेजी से फैलाया जाता रहा है। कई ऐसे दक्षिणपंथी ग्रुप के धार्मिक और राजनैतिक व्यक्ति हैं, जो लगातार अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों को निशाना बनाते हुए बयान देते रहते हैं। इनके निशाने पर मुख्य रुप से मुस्लिम समुदाय, उनका खान-पान, पूजा-पद्धति, रहन-सहन, अंतर्धार्मिक विवाह, जनसंख्या, राजनीतिक और प्रशासनिक भागेदारी रहती हैं। DFRAC की इस रिपोर्ट में दक्षिणपंथी ग्रुप के कई नेताओं के भड़काऊ भाषणों और उनके प्रभावों का अध्ययन किया गया है।
(1)- बजरंग मुनि उदासीनः
गुमनामी से सागर डूबे बाबा बजरंग मुनि उदासीन के एक भड़काऊ बयान ने उन्हें राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पटल पर ला दिया। उनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे और उस पर राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने खबरें बनानी शुरु कर दी। बजरंग मुनि इससे पहले भी लगातार भड़काऊ बयान देते रहते थे। उनके निशाने पर देश के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं।
संक्षिप्त परिचयः
अनुपम मिश्रा उर्फ बजरंग मुनि उदासीन सीतापुर जिले के खैराबाद इलाके में उदासीन आश्रम के एक हिंदू साधु और मुख्य पुजारी है। वह मध्य प्रदेश पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर का बेटा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बजरंग मुनि ने व्यावसायिक डिग्री हासिल करके एक एयरलाइन में काम भी किया था। उनका दावा है कि उन्होंने हिंदुत्व के लिए काम करने के लिए अपने पद का त्याग किया है।
बजरंग मुनि के भड़काऊ बयानः
यहां हम बजरंग मुनि द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों का विवरण दे रहे हैं-
- “महंत बजरंग मुनि की मुल्ले, ईसाइयो को ललकार” इस टाइटल से यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया गया है। इस वीडियो को 19 दिसंबर 2016 को अपलोड किया गया था। इस वीडियो में बजरंग मुनि को मुस्लिम समुदाय पर आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए और उनको धमकी देते हुए देखा जा सकता है।
- महंत बजरंग मुनि 2017 के एक वीडियो में वह दारा सिंह की रिहाई की मांग करते हैं। बजरंग मुनि ने ईसाई ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो बेटों की जलाकर हत्या करने के दोषी दारा सिंह को धर्मयोद्धा करार दिया और उसको शंकराचार्य का पद देने की वकालत की। मुनि को इस वीडियो में यह कहते सुना जा सकता है कि वह आज विजय दिवस इसलिए मना रहे हैं कि क्योंकि आज के ही दिन दारा सिंह ने ग्राहम स्टेंस को आग के हवाले किया था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दारा सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
- यूटयूब पर 23 जून 2019 को अपलोड किए गए एक वीडियो में बजरंग मुनि उदासीन को यह कहते सुना जा सकता है कि राम मंदिर तब तक नहीं बनेगा, जब तक हिन्दू हिंसक नहीं होगा। वह आगे कहते हैं कि वेदों-पुराणों में लिखा है कि धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र का उठाना जरूरी है। वह जोर देते हुए कहते हैं कि जब तक राम मंदिर के लिए शस्त्र नहीं उठेगा और लाशों की सीढ़ियां बनाकर अयोध्या नहीं पहुंचा जाता, तब तक राम मंदिर कोई नहीं बनवा सकता है। बजरंग मुनि एक सवाल के जवाब में कहते हैं कि वह अभी तक 20 हजार तलवार और 10 फरसा (फावड़ा) बांट चुके हैं और उनका निरंतर यह कार्य जारी है। इसके आगे बजरंग मुनि खुद के चुनाव लड़ने के संदर्भ में कहते हैं कि उनका मुद्दा हिन्दू हित होगा और उन्हें सिर्फ हिन्दुओं का ही वोट चाहिए।
- बजरंग मुनि का एक वीडियो सोशल मीडिया पर 7 अप्रैल 2022 को वायरल हुआ। इस वीडियो में बजरंग मुनि को सीतापुर के खैराबाद में एक मस्जिद के सामने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अभद्र और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो में बजरंग मुनि को मुस्लिम महिलाओं को घर से बाहर निकालकर रेप की खुली धमकी देते हुए भी सुना जा सकता है। इस मामले में मुनि को गिरफ्तार किया गया था, फिलहाल वह जमानत पर हैं।
इस वीडियो को शेयर करते हुए अलीशान जाफरी नाम के एक यूजर ने लिखा- “नमस्कार @sharmarekha and @NCWIndia, हम आपसे मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ बजरंग मुनि की खुलेआम बलात्कार की धमकी पर सख्ती से ध्यान देने की उम्मीद करते हैं। हिंदुत्व नेताओं द्वारा मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार के लिए बार-बार उकसाना बेहद चिंताजनक है। वे अब मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार को सामान्य कर रहे हैं!”
(2)- सूरजपाल अम्मूः
सूरजपाल अम्मू अपने भड़काऊ और विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। उनके भड़काऊ बयानों से कई बार बीजेपी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिसके बाद बीजेपी ने उनके बयानों से खुद को अलग किया था। सूरजपाल अम्मू के निशाने पर देश के अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर पर मुस्लिम रहते हैं।
संक्षिप्त परिचयः
सूरजपाल अम्मू करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनके फेसबुक पेज के मुताबिक वह करणी सेना के फाउंडर हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक गुड़गांव के सोहना शहर के एक राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाले अम्मू कानून में स्नातक हैं। अपने छात्र जीवन के दौरान वह 1984 से 1986 तक भाजपा की छात्र शाखा एबीवीपी से जुड़े रहे। बकौल अम्मू जब वह 10 साल के थे, तो वह आरएसएस के एक सदस्य के रुप में थे। उन्होंने बताया कि वह 25-26 वर्षों से भाजपा कार्यकर्ता रहे हैं और उन्होंने पीएम मोदी की उंगली पकड़कर चलना सीखा है।
सूरजपाल अम्मू के भड़काऊ बयानः
सूरजपाल अम्मू ने कई मौकों पर मुस्लिम समुदाय को लक्षित करके भड़काऊ बयान दिए हैं। यहां हम अम्मू द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों को बता रहे हैं-
- सूरजपाल अम्मू ने हरियाणा के पटौदी में मुस्लिम समुदाय को लेकर भड़काऊ बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि- हम 100 करोड़ हैं और वो (मुस्लिम) 20 करोड़ का जो नेता बनता है ओवैसी, वो हमको आंख दिखाएगा। इसके आगे अम्मू ने कहा कि ये मुंछे कटवाते हैं, हम गर्दन काटते हैं अगर अपनी पर आ गए तो। इसके अलावा उन्होंने करीना कपूर और सैफ अली खान के बेटे तैमूर को लेकर भी निशाना साधा।
- TV-9 भारतवर्ष की एक रिपोर्ट के मुताबिक सूरजपाल अम्मू ने हरियाणा सरकार से मजारों को तोड़ने की मांग। उन्होंने कहा कि अगर सरकार मजारों को नहीं तोड़ेगी तो करणी सेना मजारों को तोड़ डालेगी।
- हरियाणा के सोनीपत में सूरजपाल अम्मू ने पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान देने वाली नुपुर शर्मा का समर्थन किया। इस दौरान उन्होंने एक समुदाय विशेष पर विवादित टिप्पणियां भी की।
- सूरजपाल अम्मू और करणी सेना ने फिल्म ‘पद्मावत’ का खुलकर विरोध किया था। उन्होंने फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का सिर काटने वाले को 10 करोड़ के इनाम का ऐलान किया था। उस वक्त हरियाणा में बीजेपी मीडिया प्रभारी रहे सूरजपाल के इस बयान के बाद बीजेपी को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इसके बाद बीजेपी ने सूरजपाल अम्मू को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
निष्कर्षः
नेताओं के भड़काऊ बयान के वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल होते रहते हैं। कुछ लोग इन भड़काऊ बयानों के समर्थन में पोस्ट करते हैं, तो कुछ उसकी आलोचना के लिए ऐसा करते हैं, लेकिन इन दोनों प्रकार की स्थितियों में हेट और भड़काऊ बयानों का प्रचार और प्रसार होता रहता है। हेट और भड़काऊ बयानों के प्रसार के अलावा समस्या उस बन रहे माहौल की है जिसमें ‘हेट स्पीच’ को बढ़ावा और प्रोत्साहन मिलता है। वहीं ट्वीटर, फेसबुक सहित दूसरे सोशल मीडिया साइट्स ये दावा तो करते हैं कि वह नफरत और सांप्रदायिकता का मुकाबला करते हैं, लेकिन इस तरह के भड़काऊ वीडियो और फोटो उनके साइट्स से हटाए तक नहीं जाते हैं। हमनें यहां तक देखा है कि फैक्ट चेकर्स द्वारा फेक, भ्रामक और भड़काऊ सूचनाओं की रिपोर्ट करने के बाद कि वह कंटेंट हटाया नहीं जाता, अलबत्ता वह लगातार प्रसारित और प्रचारित होते रहते हैं। वहीं कई बार ऐसा देखा गया है कि 1 साल पहले जिस वीडियो का फैक्ट चेक किया गया था, वह फिर से अलग दावे के साथ वायरल होने लगता है। सोशल मीडिया पर यह एक बड़ी समस्या जिसके समाधान की जरूरत है।