वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग साल दर साल गिरती जा रही है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर द्वारा जारी किये गए वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स के मुताबिक़ भारत का रैंक 180 देशों में 150वां है, जो बीते वर्ष 142वां था। नेपाल के अलावा भारत के सभी पड़ोसी देशों की रैंकिग में गिरावट आई है। इस गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सवाल हमेशा से भारतीय मीडिया और उसकी कवरेज को लेकर उठता रहा है। साथ ही भारतीय मीडिया की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। इन सभी चीजों के अलावा भारतीय मीडिया के फेक और भ्रामक सूचनाओं के प्रसारण ने भी मीडिया की साख पर बट्टा लगाया है। इसका अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि पहले भ्रामक और फेक सूचनाएं समाज और सोशल मीडिया पर फैलती थी, जिसके सच्चाई का पता लगाने के लिए लोग अखबार या टीवी देखते थे। लेकिन आज कल भ्रामक और फेक सूचनाएं टीवी से फैलाई जा रही है। इसका उदाहरण हम 2000 रुपए के नोट पर नैनो जीपीएस चिप वाली स्टोरी कवरेज से ले सकते हैं। मीडिया की सनसनीखेज, फेक और भ्रामक सूचनाओं पर अभी हाल ही में सरकार द्वारा एक एडवायजरी भी जारी की गई। जिसमें कई पत्रकारों और उनके कार्यक्रमों पर टिप्पणियां की गई थीं।
मीडिया की गिरती साख और विश्वनीयता के बीच हम मुख्यधारा के पत्रकारों द्वारा टीवी के माध्यम से फैलाए गए झूठ और भ्रामक सूचनाओं का पर्दाफाश कर रहे हैं। आज हमारी टीम द्वारा रिसर्च करके एबीपी न्यूज (ABP News) की एंकर रूबिका लियाकत (Rubika Liyaquat) द्वारा फैलाए गए भ्रामक सूचनाओं का विश्लेषण किया जा रहा है।
स्मृति ईरानी की डिग्री का मामला
वर्ष 2020 में हुए 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव में पब्लिक डिबेट के दौरान जब एक आरजेडी समर्थक ने कहा,”आप के नेता (तेजस्वी यादव) 9वीं पास हैं, मैं पूछता हूं कि इन्हीं की पार्टी (बीजेपी) की मंत्री थीं स्मृति ईरानी, उनसे पूछिए, उनकी डिग्री क्या है?” इस पर “सीधा सवाल” नाम से प्रोग्राम होस्ट कर रहीं रूबिका (Rubika) बीजेपी के प्रवक्ता से सवाल पूछने के बजाए, ख़ुद ही जवाब देती हैं,”एमए किया है सर कॉरेस्पोंडेंस से, एमए किया हुआ है। ”
मोदी अब्बू के गुजराती कॉलेज से.. https://t.co/qIMydX8qvg
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) April 18, 2019
डिग्री की कहानीः
अप्रैल 2015 में तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन (एचआरडी) मंत्री स्मृति ईरानी पर आरोप लगे कि उन्होंने विभिन्न चुनावों के दौरान दिए गए हलफनामे में अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में अलग-अलग जानकारी दी है। 2004 के लोकसभा चुनाव के हलफ़नामे में, उन्होंने कथित तौर पर अपनी शैक्षणिक योग्यता बी.ए. दिल्ली विश्वविद्यालय (स्कूल ऑफ़ भांगड़ा कॉरेस्पोंडेंस) से बतायी थी। हालांकि, 2011 में गुजरात से राज्यसभा और 2014 में उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए अपने नामांकन पत्र में हलफनामा दाखिल करते हुए, उन्होंने कहा था कि उनकी शैक्षणिक योग्यता दिल्ली विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से बी.कॉम, भाग-1 थी।
फ़्रीलांस राईटर, अह़मर ख़ान ने अप्रैल 2015 में शिकायत दर्ज करवाई कि तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन (एचआरडी) मंत्री स्मृति ईरानी ने अप्रैल 2004 में लोकसभा चुनाव के लिए एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने 1996 में स्कूल ऑफ कॉरेस्पोंडेंस (दिल्ली विश्वविद्यालय) से कला स्नातक (आर्ट ग्रेजुएशन) की पढ़ाई मुकम्मल की थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए 16 अप्रैल 2014 को, उन्हीं के द्वारा दायर की गई,एक अन्य हलफ़नामे में कहा गया कि वह स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (दिल्ली विश्वविद्यालय-DU) से बैचलर ऑफ कॉमर्स पार्ट- I थी।
याचिका में कहा गया है कि तथ्य और परिस्थितियां, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम(आरपीए), 1951 की धारा 125ए के तहत स्मृति ईरानी द्वारा किए गए अपराधों को ज़ाहिर करती हैं। अरपीए की धारा 125A में झूठा हलफनामा दाखिल करने पर जुर्माने का प्रावधान है और इसमें छह महीने तक की जेल या जुर्माना या दोनों शामिल हैं।
अदालत ने 20 नवंबर 2016 को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) और दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अधिकारियों को केन्द्रीय मंत्री ईरानी की योग्यता के रिकॉर्ड लाने के लिए निर्देश देने की मांग करने वाली शिकायतकर्ता की याचिका को मंज़ूर कर लिया, क्योंकि डीयू और ईसीआई ने कहा था कि वह एजूकेशन रिकॉर्ड अदालत के सामने रखने में असमर्थ थे। शिकायत की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने अदालत को बताया कि ईरानी द्वारा नामांकन दाखिल करते समय उनकी शैक्षणिक योग्यता के संबंध में जो दस्तावेज़ दाखिल किए गए थे, उनका पता नहीं चल सका है।
साथ ही, अदालत के पहले के निर्देश के अनुसरण में, दिल्ली विश्वविद्यालय ने यह भी प्रस्तुत किया था कि 1996 में ईरानी के बीए पाठ्यक्रम से संबंधित दस्तावेज़, जैसा कि 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान दायर एक हलफनामे में उनके द्वारा कथित रूप से उल्लेख किया गया था, अभी तक नहीं मिले हैं।
6 अक्टूबर 2016 को पटियाला हाउस कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के सर्टिफिकेट की तस्दीक़ करे।
18 अक्टूबर 2016 को, दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि स्मृति ईरानी को फर्ज़ी डिग्री मामले में समन नहीं किया जाएगा क्योंकि ईरानी के खिलाफ़ कॉलेज की डिग्री पर सवाल उठाने वाली याचिका उन्हें तंग करने की कोशिश है। अदालत ने कहा स्मृति ईरानी अगर, केंद्रीय मंत्री नहीं होतीं तो शिकायतकर्ता की ओर से शायद यह याचिका दायर नहीं की जाती।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट हरविंदर सिंह ने कहा कि कई साल गुज़र जाने की वजह से बुनियादी सबूत पहले ही खो चुके हैं, अदालत के लिए दोयम दर्जे के सबूत पर्याप्त नहीं। मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने ईरानी के खिलाफ़ शिकायत दर्ज करने में “11 साल की देरी” की है।
2014 के इंडिया टुडे वूमेन समिट में भारत के मानव संसाधन और विकास मंत्री की ह़ैसियत से ईरानी ने कहा था,“मेरे पास येल से भी एक डिग्री है, जिसे मैं बाहर ला सकती हूं और दिखा सकती हूं कि येल ने मेरी नेतृत्व क्षमता का जश्न कैसे मनाया।”
आपको बता दें कि इस संदर्भ में जानकारी सामने आई थी कि ईरानी द्वारा जिस डिग्री का उल्लेख किया जा रहा था, वो दरअसल येल विश्वविद्यालय में 6-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए येल फ़ैकल्टी का सर्टिफिकेट था।
निष्कर्ष:
हमारी पड़ताल में सामने आया है कि स्मृति ईरानी ने कभी भी एमए पास किए जाने का दावा नहीं किया है। उन्होंने हलफनामे में स्नातक की डिग्री बताई है। इसलिए रूबिका लियाकत द्वारा यह कहना है कि वह “एमए पास” हैं, यह भ्रामक है।
रुबिका लियाक़त और सीएए–एनआरसी
एबीपी (ABP) के प्रोग्राम “शिखर समागम” में बॉलीवुड की तीन शख्सियतों को आमंत्रित किया गया था, जिसके संचालन की ज़िम्मेदारी रूबिका (Rubika Liyaquat) निभा रही थीं। इस शो में अभीनेत्री स्वरा भास्कर और रूबिका लियाक़त के बीच काफी गर्मागर्म बहस हुई। प्रोग्राम सीएए-एनपीआर-एनआरसी पर केंद्रित था। प्रोग्राम के दौरान रूबिका (Rubika) ने कहा कि- “स्वरा! बस मैं आप को समझा रही हूं।” आख़िरकार, उन्होंने स्वरा से पूछ ही लिया, “अच्छा, स्वरा भास्कर! देश के प्रधानमंत्री कौन सी भाषा में बोलें कि आपको समझ में आएगा कि एनआरसी को लेकर, हिबरू में बोलें, फ़्रेंच में बोलें, संस्कृत में बोलें, कोई और भाषा में बोलें कि आप लोगों को समझ में आ जाए कि एनआरसी पर अभी किसी तरह की कोई बैठक भी नहीं हुई है, कोई ड्राफ्ट भी तैयार नहीं हुआ है, क्या करें प्रधानमंत्री कि आप लोगों को यक़ीन हो जाए।”
स्वरा भास्कर ने कहा,”सबसे पहले तो देश के प्रधानमंत्री, पता नहीं कौन सी भाषा, शायद गुजराती में अपने गृह मंत्री को समझा लें कि एनआरसी पर कोई बात नहीं हुई है, क्योंकि गृहमंत्री साहब और गृह मंत्रालय नौ या 10 बार बोल चुका है, एनआरसी होने वाला है पूरे देश में।”
इस पर तपाक से रुबिका ने कहा, “वैसे याद दिला दूं, वह सिर्फ प्रधानमंत्री के गृह मंत्री नहीं हैं, आप हिंदुस्तान की सिटीज़न हैं, आपके भी गृह मंत्री हैं।”
स्वरा भास्कर ने कहा,” रुबिका जी! भारत एक लोकतंत्र है, अगर आपको लगता है कि गृह मंत्री साहब को सीरियसली नहीं लेना चाहिए, नो प्रॉब्लम, आप यह बात सरकार से बोल दें कि हमें बोल दे, हम नहीं लेंगे सीरियस।”
फिर रुबिका ने कहा कि अपना-अपना नज़रिया है, गृहमंत्री को आपको इंपोर्टेंस देनी ही होगी, इसलिए देनी होगी कि क्योंकि वही हैं, जिनसे आप सवाल कर सकते हैं और वो आप को जवाब देंगे।”
एनआरसी पर अमित शाह और मोदी के बयानों में विरोधाभास
वर्तमान भारत सरकार सीएए को एक इलेक्शन विनिंग टूल की तरह इस्तेमाल कर बंगाल समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश में सुलझाने के बजाए और उलझा दिया।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कोलकाता में 22 अप्रैल 2019 में प्रेस कॉन्फ्रेंस में एनआरसी पर बयान दिया,”आप क्रोनोलॉजी समझ लीजिए, पहले सीएबी आने जा रहा है। सीएबी आने के बाद एनआरसी आएगा और एनआरसी सिर्फ बंगाल में नहीं आएगा, पूरे देश के लिए आएगा”।
उन्होंने एक मई 2019 को भी एक रैली को संबोधित करते हुए कहा,” सबसे पहले हम, सीएबी के माध्यम से, हिंदू, सिख, बुद्ध, जैन और क्रिस्चियन शरणार्थियों को नागरिकता देंगे, इसके बाद एनआरसी को हम अमल में लाने वाले हैं। मुझे बताओ! ये जो घुसपैठिए आए हैं, उनको निकालना चाहिए या नहीं?, ज़ोर से बोलो, निकालना चाहिए या नहीं।?”
अमित शाह (Amit Shah) ने 18 सितंबर 2019 को हिंदुस्तान टाइम (HT) इवेंट में कहा,” चुनावी घोषणा पत्र में हमने देश की जनता को वादा किया है, ना केवल असम में बल्कि देश भर के अंदर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न (एनआरसी) को लेकर आएंगे और देश के नागरिकों का रजिस्टर बनेगा। इस के अलावा बाक़ी के लोगों की बाबत, कानूनी प्रक्रिया के हिसाब से हम आगे कारवाई करेंगे।”
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने 22 दिसंबर 2019 को लाल क़िला रैली से संबोधित करते हुए एनआरसी पर कहा,” वो देखो, कौवा कान काट कर उड़ गया और फिर लोग कौवे के पीछे भागने लगे, अरे भाई! पहले अपना कान तो देख लीजिए कि कौवा काट गया कि नहीं काट गया, पहले ये तो देख लीजिए कि एनआरसी के ऊपर कुछ हुआ भी है क्या? झूठ चलाए जा रहे हो!! मेरी सरकार आने के बाद, 2014 से आज तक, मैं 130 करोड़ देशवासियों को कहना चाहता हूं, कहीं पर भी एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई, कोई बात नहीं हुई। सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट ने जब कहा तो हमें, सिर्फ असम के लिए करना पड़ा, क्या बातें कर रहे हो। झूठ बोला जा रहा है।”
विरोध प्रदर्शन का अस़र
असम में एनआरसी को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। नागरिक अधिकारों को लेकर असम सहित पूरे देश में लगातार प्रदर्शन भी हुए। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में बिल फाड़ कर कड़ा विरोध किया था। विपक्षी सांसदों ने संसद में काफी हंगामा भी किया था। वहीं इसमें भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची के भी आरोप लगे हैं।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया समेत विभिन्न यूनिवर्सिटियों के छात्रों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और उनमें रोष फूट पड़ा था क्योंकि सरकार कुछ भी साफ़ साफ़ नहीं कह रही थी।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों का विरोध प्रद्रशन और उनके खिलाफ़ पुलिसिया क्रैक डाउन की प्रतिक्रिया में शाहीन बाग़ सीएए विरोधी प्रोटेस्ट का केंद्र बन गया। प्रदर्शन इस ज़ोर का था कि सरकार को एनआरसी, एनपीआर और सीएए को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा।
रूबिका और तबलीग़ी जमात
कोविड-19 एक वैश्विक आपदा है। कोरोना को लेकर भी भारत में सांप्रदायिक और धार्मिक रंग दिया गया। मीडिया द्वारा तब्लीगी जमात को लेकर कई सनसनीखेज और भ्रामक सूचनाएं प्रसारित की गईं। रूबिका लियाक़त (Rubika Liyaquat) ने शो “सीधा सवाल” में दावा किया कि पुलिस जमातियों को ढूंढने के लिए बरेली, कर्मपुर के इज़्जत नगर गई थी। 200 से 250 लोगों ने पुलिस पर हमला कर दिया और आईपीएस अभिषेक वर्मा समेत कई पुलिस कर्मी घायल हो गए। फ़िर पुलिस ने हल्का बल प्रयोग करके सर्च अभियान चलाया और ये आप देखिए उसका नमूना। पुलिस ने उसके बाद उपद्रवियों को जमकर पीटा।
वीडियो में देखा जा सकता है कि पुलिस की झुंड एक एक व्यक्ति को किस तरह घेर कर पीट रही है। रूबिका (Rubika) के मुताबिक़ पुलिस द्वारा पीटे जाने वाले सभी लोग, पुलिस पर पथराव करने आए थे और पुलिस वहां इज़्ज़त नगर की “इज़्ज़त” रखने के लिए यानी क्वारंटाईन में रखने के लिए, कोरोना वायरस से बचाने के लिए पहुंची थी।
फैक्ट चेकः
रूबिका लियाक़त (Rubika Liyaquat) ने इस पूरी घटना को ज़बरदस्ती तबलीग़ी जमात से जोड़ दिया, क्योंकि बाद में एसएसपी बरेली ने जो बयान दिया, उससे बिल्कुल साफ़ हो गया कि इस घटना से तबलीग़ी जमात का कोई लेना देना नहीं था। बयान के मुताबिक़ पूर्ण रुप से लॉकडाउन लागू करवाने के सिलसिले में पुलिस की टीम कर्मपुर चौधरी गयी थी। वहां कुछ नौजवान लड़के इकठ्ठा थे, जिन्हें समझा बुझा कर वापस भेजा गया और पुलिस की टीम वापस आ गई।
रुबिका और साउथ इंडियन आम
रुबिका लियाक़त ने तंज़ के लहजे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को “आम प्रेम” कहकर एक रिपोर्ट पेश की, जिसके मुताबिक़ राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें यूपी के आम बिल्कुल पसंद नहीं। रिपोर्ट में कहा जा रहा है, जिस यूपी से पिछली बार तक राहुल सांसद थे, उसी यूपी का उन्हें कुछ भी पसंद नहीं आ रहा है। गोरखपुर से सांसद रवि किशन के ट्वीट का उल्लेख भी किया गया,“राहुल जी को उत्तर प्रदेश के आम नहीं पसंद और उत्तर प्रदेश को कांग्रेस नहीं पसंद, हिसाब बराबर” साथ ही राहुल द्वारा त्रिवनंतपुरम में दिये गये एक बयान को भी पेश किया गया, जिसके मुताबिक़ उत्तर भारत की अपेक्षा केरल के लोग बेहतर समझ रखते हैं।
ग़ौरतलब है कि रुबिका ने आम की पसंद पर राहुल गांधी के बयान के एक ख़ास हिस्से पर ज़ोर दिया क्योंकि राहुल गांधी से जब रिपोर्टर्स पूछते हैं कि उन्हें कहां का आम पसंद है, तो राहुल जवाब में कहते हैं कि उन्हें आंध्रा का आम पसंद है। और आगे वो ये भी कहते हैं कि ये पसंद पसंद की बात (मैटर ऑफ च्वाइस) है। आगे बातचीत में राहुल गांधी लंगड़ा और दसेहरी आम की भी बात करते हैं, वो कहते हैं कि दसेहरी उनके लिए ज़्यादा मीठा है।
निष्कर्ष:
आम खाना व्यक्तिगत च्वॉइस का मामला है। इस पर तंज़ या सवाल खड़े करना “नॉन ईशू” को “ईशू” बनाना है।
रूबिका और फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स
रुबिका अपने बहुचर्चित शो “मास्टर स्ट्रोक” में फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स की टीम का इंटरव्यू कर रही थीं। इस दौरान उन्होंने “वाट्सऐप यूनिवर्सिटी” के बहुत से सामग्री का दोहन किया।
“मास्टर स्ट्रोक” के इस एपिसोड में 14:38 मिनट पर थोड़े भावुक अंदाज़ में उन्होंने पूछा,“मुझे एक बात बताइये कि 32 साल क्यों लग गये? क्यों इस चीज़ को इतना छोटा करके दिखाया गया है?” वो आगे कहती हैं,“मैं इसको बिला झिझक कहुंगी कि हिन्दुस्तान में जब एक बच्ची के साथ कुछ गड़बड़ हो जाती है, तो सरकारें क़ानून बदल देती हैं, पूरा देश सड़कों पर उतर आता है और यहां पर हम पांच लाख कश्मीरी हिन्दुओं, पंडितों की बात कर रहे हैं, प्लीज़ आप तीनों में से मुझे कोई जवाब दे दीजिए, पांच लाख कश्मीरी पंडित अपने घरों से निकल जाते हैं और 32 साल लग जाते हैं…”
एक तो फ़िल्म में कई फ़ैक्चुअल मिस्टेक हैं, दूसरे पैनलिस्ट मेहमान भी कई फ़ैक्चुअल मिस्टेक कर रहे हैं मगर एक एंकर का धर्म निभाते हुए काउंटर करने के बजाए…वो ख़ुद फ़ैक्चुअल मिस्टेक करती हैं।
हक़ीक़त:
पी. पी कपूर के दायर आरटीआई के जवाब में ख़ुद भारत सरकार ने बताया है कि 1.5 लाख लोगों ने कश्मीर से पलायन किया था और उनमें से 88 प्रतिशत हिंदू थे जो घाटी में हुई हिंसा और ख़तरे के कारण वहां से पलायन कर गए थे।
वहीं द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, 219 कश्मीरी पंडित मारे गए और पंडितों के 24000 परिवार घाटी से पलायन कर गए। कश्मीर घाटी छोड़ने वाले केवल 1.5 लाख प्रवासियों के रिकॉर्ड हैं। हालांकि 88% हिंदू थे, लेकिन ऐसा कोई डेटा 5 लाख की बड़ी संख्या से मेल नहीं खाता।
रूबिका लियाक़त (Rubika Liyaquat) नें “जब एक बच्ची के साथ कुछ गड़बड़ हो जाती है, तो सरकारें क़ानून बदल देती हैं” कहकर शायद निर्भया कांड और तत्कालीन केन्द्र सरकार (कांग्रेस) को निशाना बनाया है। रूबिका की इस “लिायाक़त” से साबित होता है कि गैंग रेप जैसे जघन्य अपराध को “कुछ गड़बड़” भर ही मानती हैं। एक पत्रकार के लिए निर्भया जैसे गैंगरेप पर ऐसी टिप्पणी करना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।
(आप #DFRAC को ट्विटर, फ़ेसबुक, और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।)