उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों की विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। मतदान और नतीजों की तारीखों का भी ऐलान हो गया है। ऐसे में इन चुनावों को लेकर ओपिनियन पोल की बाढ़ सी आ जा गई है। समाचार चैनल सर्वे करने वाली एजेंसियों के साथ मिलकर ओपिनियन पोल देते हैं, जिससे जनता के मूड का रूझान मिल जाता है। लेकिन इन ओपिनियन पोल की सत्यता और उनकी वैधानिकता को लेकर हमेशा से विवाद और बहस होती रही है।
कुछ लोगों का मत है कि ओपिनियन पोल प्रोपेगैंडा, गोरखधंधा, तमाशा और मनगढंत होते हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी या विचारधारा के प्रति जनमत को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। वहीं कुछ लोग इसे ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का हिस्सा मानते हैं, साथ ही इसे प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मजबूती के लिए सार्थक पहल बताते हैं। लेकिन सवाल तो उठते ही रहे हैं, ये सवाल इसलिए भी उठते हैं कि ज्यादातर ओपिनियन पोल सही रिजल्ट देने में विफल रहे हैं। उनके द्वारा दिया गया परिणाम जनता द्वारा किए गए मतदान से विपरीत होता है।
2004 के लोकसभा चुनावों में ओपिनियन पोल में सरकार बीजेपी की बनती दिखाई गई थी। लेकिन जनता के पोल में सरकार कांग्रेस की बनी। इसके अलावा तमाम राज्यों को ओपिनियन पोल भी गलत साबित हुए थे। वहीं जब से सोशल मीडिया आया है तब से ओपिनियन पोल को लेकर एक अलग ही खेल शुरु हो गया है। सर्वे एजेंसियां, पत्रकार, न्यूज चैनल और अखबार, चुनाव सहित किसी भी मुद्दे पर ऑनलाइन ही सर्वे करवा रहे हैं। कई सोशल मीडिया अकाउंट्स तो सिर्फ सर्वे के रिजल्ट ही देते रहते हैं। हालांकि ओपिनियन पोल एक बड़ा टीम वर्क है। इसमें उस प्रदेश या देश की ज्यादातर विधानसभाओं या लोकसभाओं के रहने वाले मतदाताओं की राय जानी जाती है। आइए सबसे पहले ओपिनियन पोल की पूरी प्रक्रिया को जान लेते हैं…
ओपिनियन पोल
ओपिनियन पोल चुनाव से पहले जनता के मूड और उसके फैसले को जानने की कोशिश होती है। इसके साथ ही मुद्दों और राजनीतिक परिस्थियों, नेताओं की लोकप्रियता जानने का भी प्रयास होता है।
सैंपलिंग या नमूना
ओपिनियन पोल के लिए सैंपलिंग बहुत ही मायने रखता है, क्योंकि ओपिनियन पोल की वैधानिकता और सत्यता उसके सैंपल साइज पर निर्भर करती है। सैंपलिंग में लक्षित जनसंख्या का चयन होता है। सैंपलिंग को अगर आसान भाषा में ऐसे समझें तो हम रसोई में चावल पकाते वक्त में चावल के कुछ दानों का परीक्षण करके पता कर सकते हैं कि चावल पक गया है या नहीं। इसी तरह से प्रदेश के विभिन्न विधानसभाओं के कुछ मतदाताओं की राय जानकर एक नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि विधानसभा में इस बार फलाना पार्टी का उम्मीदवार चुनाव जीतेगा।
ओपिनियन पोल का क्या झोल?
ओपिनियन पोल को लेकर सोशल मीडिया पर कई अकाउंट्स बन गए हैं, जो अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स से पोल के रिजल्ट जारी करते रहते हैं। ट्वीटर पर लोक पोल @LokPoll नाम का अकाउंट है। इस प्रोफाइल का विजिट करने पर हमने पाया कि यहा लगातार पोल के रिजल्ट जारी किए जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के चुनावों को लेकर 11 जनवरी 2022 को इस अकाउंट से एक ओपिनियन पोल का रिजल्ट जारी किया गया है। इस रिजल्ट के अनुसार यूपी में बीजेपी+ 207, समाजवादी पार्टी+ 162, कांग्रेस-14, बीएसपी-13 और अन्य-7 सीटों पर जीत हासिल करते हुए दिख रहे हैं।
https://twitter.com/LokPoll/status/1480882195648552960
यहां ध्यान देने वाली बात है कि इस ओपिनियन पोल के रिजल्ट के साथ सैंपल साइज का कोई खुलासा नहीं किया गया है। ना ही यह बताया गया है कि इस पोल के लिए किस महीने में सैंपल लिए गए थे। उनकी टाइमलाइन क्या है।
इससे पहले 30 दिसंबर 2021 को लोकपोल द्वारा यूपी को लेकर एक और ओपिनियन पोल डाला गया था। जिसके परिणाम के मुताबिक बीजेपी- 198, समाजवादी पार्टी-151, कांग्रेस-25, बीएसपी-15 और अन्य- 14 सीटें पाते हुए दिख रहे हैं। इस पोल के रिजल्ट में भी कहीं भी सैंपल साइज, सैंपल क्षेत्र और सैंपल लेने का महीना या टाइम पीरियड नहीं बताया गया है।
https://twitter.com/LokPoll/status/1476496463072882688
इसके अलावा लोकपोल द्वारा उत्तराखंड, गोवा और पंजाब चुनावों को लेकर भी ओपिनियन पोल जारी किया गया है।
वर्ल्डक्लाउडः
वर्डक्लाउड हमें बताता है कि ट्वीट्स में ज्यादातर किन शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। कुछ शब्दों में “चुनाव परिणाम”, “बीजेपी”, “आईएनसी”, “विधानसभा चुनाव” और “नगर निगम”, शामिल हैं।
टाइमलाइनः
लोकपोल के इस अकाउंट की टाइमलाइन दिसंबर 2020 को ट्विटर से जुड़ी और तब से सक्रिय है। उन्होंने मार्च 2021 में सबसे ज्यादा ट्वीट किए हैं।
अकाउंट मेंशन:
लोकपोल द्वारा मेंशन किए गए अकाउंट में ज्यादातर उसने खुद को किया है और उसके बाद @AsiaElects, @Apnipartyonline, @BJP4UK आदि शामिल हैं।
हैशटैग का इस्तेमाल:
यह आंकड़ा दिखाता है कि लोकपोल के ट्वीट्स में ज्यादातर कौन से हैशटैग का इस्तेमाल किया गया था। #ResultWithLokPoll का 130 बार सबसे अधिक उपयोग किया गया, इसके बाद #LokPoll का 100 से अधिक बार उपयोग किया गया।
ट्वीट्स उदाहरण:
Lok Poll Assessment for 2022 Assembly Election in Uttarakhand.
Maidan Region (20 Seats)
▪️INC 10
▪️BJP 9
▪️BSP 1#UttarakhandElections2022 #AssemblyPolls #AssemblyElections #UttarakhandPolls2022— Lok Poll (@LokPoll) December 23, 2021
#OpinionofTheNation | #देश_की_राय
Lok Poll Assessment for 2024 Loksabha ElectionsUttar Pradesh (80 Seats)
▪️BJP 49
▪️SP 18
▪️BSP 05
▪️INC 03
▪️RLD 03
▪️AD 02#LoksabhaElection2024 #Elections2024— Lok Poll (@LokPoll) November 5, 2021
#OpinionofTheNation | #देश_की_राय
Lok Poll Assessment for 2024 Loksabha ElectionsHaryana (10 Seats)
▪️INC 06
▪️INLD 02
▪️BJP 02#LoksabhaElection2024 #Elections2024— Lok Poll (@LokPoll) October 3, 2021
निष्कर्षः
ओपिनियन पोल के बारे में कहा जाता है कि ओपिनियन पोल मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए मतदाता मेकर की तरह कार्य करते हैं। ओपिनियन पोल के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास होता है। इन्हीं चिंताओं के मद्देनजर 1997 में चुनाव आयोग ने देश में पहली बार पहली बार एग्जिट और ओपिनियन पोल पर राजनैतिक पार्टियों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में ज्यादातर पार्टियों का मत था कि यह पोल्स अवैज्ञानिक होते हैं और इनकी प्रकृति और आकार पर भेदभाव किया जाता है।
हालांकि एग्जिट पोल को लेकर कानून बना हुआ है। जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 के तहत मतदान के पहले एग्जिट पोल सार्वजनिक नहीं किए जा सकते, बल्कि मतदान प्रक्रिया पूरी होने के आधे घंटे बाद ही इनका प्रकाशन या प्रसारण किया जा सकता है।
वहीं ओपिनियन पोल को लेकर वर्तमान समय में ज्यादा समस्या गंभीर हो गए है क्योंकि चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक इस बार वर्चुअल रैलियों को परमिशन दी है। सभी सभाएं, रैलियां, रोड शो, बाइक रैलियां और साइकिल यात्रा सहित सभी तरह के चुनावी कार्यक्रम पर पाबंदी लगाई हुई है। इसलिए सभी पार्टियों को वर्चुअल रैलियां करने की इजाजत दी गई है। इस माहौल में अगर ऑनलाइन सोर्सेज से बिना किसी फूलप्रूफ सोर्स दिए अगर ओपिनियन पोल जारी किए जाते तो इससे मतदाताओं को काफी प्रभावित किया जा सकता है। यह स्थिति चुनाव और प्रभावी लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।