विदेशी धरती पर पंजाब को लेकर अलगाववादी नेताओं के कुत्सित प्रयासों ने आज भारत और कनाडा के बीच सबंधों में तनाव पैदा कर दिया। पिछले दिनों देखा गया कि कनाडा में लगातार भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा था। सिख अलगाववादियों ने अलग खालिस्तान की मांग को लेकर “जनमत संग्रह” कराकर भारत की संप्रभुता पर चोट पहुंचाने की कोशिश की। वहीं कनाडा ने अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में इन भारत विरोधी गतिविधियों को संरक्षण प्रदान किया। दूसरी और पाकिस्तान ने भी भारत विरोधी गतिविधियों में सिख अलगाववादियों की मदद की है। DFRAC अपनी इस रिपोर्ट में कनाडा में फैले खालिस्तानी नेटवर्क का विश्लेषण प्रदान कर रहा है, जो पाकिस्तान की सहायता से चल रहा है।
आखिर कनाडा में सिख अलगाववादियों को क्यों बढ़ावा दिया जा रहा?
कनाडा की जस्टिन ट्रूडो की अल्पमत सरकार को खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन से जुड़े जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन हासिल है। एनडीपी के पास संसद में 24 सीटें हैं, जो ट्रूडो की सरकार को बचाए रखने के लिए आवश्यक है। वहीं दोनों नेताओं के बीच इस गठबंधन को चलाने के लिए समझौता भी हुआ है, जो 2025 तक लागू रहेगा। ऐसे में ट्रूडो के लिए सिख अलगाववादियों को संरक्षण देना भी अपनी एक मजबूरी है।
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन के अगुवाई
एनडीपी के जगमीत सिंह धालीवाल उर्फ ‘जिम्मी’
कनाडा में भारत विरोधी अलगाववादी विचारधारा के प्रसार में पहला नाम जगमीत सिंह का आता है। अगस्त 2019 की शुरुआत में भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किए जाने के बाद जगमीत सिंह की सक्रियता तेज हो गई। विशेष रूप से, 2013 में सिंह ने ओंटारियो में एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें सभी खालिस्तानी कार्यकर्ता एक साथ इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रतिष्ठा खराब करने के इरादे से एकजुट नजर आए।
2015 में, एनडीपी विधायिका के सदस्य के रूप में कार्य करते हुए, सिंह ने सैन फ्रांसिस्को में खालिस्तान समर्थक रैली में भाग लिया, जहां उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए कुख्यात आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले की खुले तौर पर प्रशंसा की।
2016 में अपने रुख को आगे बढ़ाते हुए सिंह ने भारत से अलग एक स्वतंत्र सिख मातृभूमि के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हिंसा को भी जायज ठहराया। इसके अलावा, भारत सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले पर सिंह ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को भी अपना समर्थन व्यक्त किया।
हालांकि कनाडा की राजनीति में सिंह की जबरदस्त वृद्धि को बहुसंस्कृतिवाद की जीत के रूप में देखा जाता है, लेकिन चरमपंथी संगठनों के साथ उनके संबंधों को लेकर अब चिंताएं बढ़ गई हैं।
भारत पर जगमीत सिंह के ट्वीट
उनके ट्वीट्स का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्ष 2014-2015 में उनका अतिवादी और घृणित रुख 2019 के चुनावों के बाद कनाडाई सरकार में हिस्सेदारी प्राप्त करने के बाद भारत को लक्षित करने के लिए अधिक चालाक, सौम्य और पेशेवर दृष्टिकोण में बदल गया।
2014-2015 के दौरान उन्होंने हिंदू और सिख समुदायों के बीच झड़पों को बढ़ावा देकर, उन्हें राज्य प्रायोजित नरसंहार के रूप में चित्रित करके एक विभाजनकारी नरेटिव बनाने का प्रयास किया। हालाँकि, 2020 के आसपास उनकी भाषा में और तीखापन आ गया। पहले की तुलना में उनके बयानों में नफरत बढ़ गई। वे हिंसा को भड़काने के लिए किसी भी बात को बड़ी चतुराई के साथ बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने लगे। उन्होंने समय-समय पर किसानों के विरोध प्रदर्शन, मुस्लिम भावनाओं के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया। इतना ही नहीं उन्होने जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए जस्टिन ट्रूडो की यात्रा की भी आलोचना की।
वे अपने ट्वीट में न सिर्फ सिख बल्कि हिन्दू और मुसलमानों में भी विभाजन पैदा करने में पीछे नहीं रहे।
दुश्मन का दुश्मन, मेरा दोस्त
पाकिस्तान के प्रति जगमीत सिंह का झुकाव और उनके साथ अच्छे रिश्ते कई बार उनके ट्वीट्स में ही देखने को मिले हैं। यहां दिए गए इन ट्वीट्स से पता चलता है कि वे एक-दूसरे के साथ सबसे अच्छे दोस्त का रिश्ता कैसे निभा रहे हैं।
नेशनल सिख यूथ फेडरेशन (एनएसवाईएफ) और जिमी के बीच मजबूत संबंध
2012 में स्थापित एनएसवाईएफ यूके के साउथ हॉल में स्थित एक सक्रिय संगठन है, जो खालिस्तान आंदोलन की वकालत करता आया है। शमशेर सिंह द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए संगठन ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसक तरीकों के इस्तेमाल के लिए खुले तौर पर समर्थन व्यक्त किया। फरवरी 2016 में, जगमीत सिंह को NSYF द्वारा साउथ हॉल लंदन-यूके में अतिथि के रूप में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस दौरान उन्होने न तो शमशेर सिंह के संप्रभुता प्राप्ति के लिए हिंसा के समर्थन को अस्वीकार किया और नहीं वे खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन में अपनी भागीदारी के बारे में क्षमाप्रार्थी रहे।
सिख फॉर जस्टिस
2007 में गठित, एसएफजे का नेतृत्व पंजाब विश्वविद्यालय से कानून स्नातक गुरपतवंत सिंह पन्नू करते हैं, जो वर्तमान में अमेरिका में एक वकील हैं।
एसएफजे ने पहली बार 2018 में घोषणा की थी कि वह “पंजाब को भारतीय कब्जे से मुक्त कराने” के उद्देश्य से बड़ी संख्या में सिख प्रवासी वाले कई देशों में एक अनौपचारिक जनमत संग्रह अभियान आयोजित करेगा, जिसे उस समय “जनमत संग्रह 2020” कहा गया था।
पन्नू को ब्रिटेन में स्थित बीकेआई आतंकवादी परमजीत सिंह उर्फ पम्मा, कनाडा में स्थित हरदीप सिंह निज्जर (केटीएफ) और मलकीत सिंह फौजी (आईएसवाईएफ/बीकेआई) के साथ-साथ विभिन्न खालिस्तानी संगठनों के साथ सक्रिय रूप से संपर्क में पाया गया। पन्नू ने कैटेलोनिया, स्पेन की तर्ज पर एक अलग सिख राज्य की स्थापना की वकालत की है और यहां तक कि 2017 में कैटेलोनिया में हुए आत्मनिर्णय जनमत संग्रह का अध्ययन करने के लिए स्पेन की यात्रा भी की।
1 जुलाई, 2020 को, भारत सरकार ने गुरपतवंत सिंह पन्नू को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम [यूएपीए] के तहत आतंकवादी के रूप में नामित किया। एसएफजे ने खालिस्तानी राज्य के लिए समर्थन जुटाने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से पाकिस्तानी दलितों, मुसलमानों और ईसाइयों को आकर्षित करने का भी प्रयास किया है।
आंदोलन से जुड़े कीवर्ड का प्रसारः
1. खालिस्तान
‘खालिस्तान’ शब्द को कनाडा में सबसे अधिक बार सर्च किया गया, इसके बाद भारत का स्थान रहा, जिसका मुख्य कारण हाल ही में हुए कनाडा के सरे में हुए जनमत संग्रह को माना गया।
कनाडा में 10 सितंबर के जनमत संग्रह के बाद 16 सितंबर को यह शब्द सर्च लिस्ट में टॉप पर था।
2. हरदीप सिंह निज्जरदोनों देशों के बीच हालिया राजनयिक मुद्दे को लेकर हरदीप सिंह निज्जर का नाम कनाडा में सबसे ज्यादा बार सर्च किया गया।
3. #IndianTerrorismExposed
कनाडा-भारत के बीच हालिया राजनयिक मुद्दे के बाद पाकिस्तानी सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे प्रमुखता से शेयर किया।
हैशटैग के साथ इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में ‘हत्या, ‘रॉ एजेंट’, ‘टेरर स्टेट’ आदि शामिल है।
खालिस्तान आंदोलन का समर्थनः
कनाडाई पत्रकार
कई कनाडाई सिख पत्रकारों ने भी खालिस्तानी प्रोपेगेंडे को एनडीपी के बयानों के साथ बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया।
जगदीप सिंह: भारत को निशाना बनाते हुए लाइव टेलीकास्ट के साथ दैनिक शो “जवाब मंगदा पंजाब” चलाते हैं।
इन पत्रकारों ने खालिस्तान के समर्थन में कई ट्वीट शेयर किए हैं-
पाकिस्तान
पाकिस्तानी मीडिया, थिंक टैंक और सोशल मीडिया यूजर ने जनमत संग्रह, मतदान अभियान और खालिस्तानी आंदोलन के वीडियो को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का बीड़ा उठाया। ताकि भारत विरोधी उनका ये एजेंडा बना रहे।
- पन्नू की धमकी भरी टिप्पणियों की कवरेज:
पाकिस्तानी मीडिया में खालिस्तानी आतंकी पन्नू का कथित बयान प्रमुखता से पब्लिश हुआ, जिसमें वह भारत का विभाजन, पंजाब को खालिस्तान बनाने और खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का बदला लेने की धमकी दे रहा है। पन्नू की इस धमकी को पाकिस्तानी मीडिया जैसे- नियो न्यूज उर्दू, सच न्यूज, वॉयस न्यूज और बोलो पाकिस्तान समेत कई मीडिया हाउसों ने रिपोर्ट किया है।
2- 10 सितंबर 2023 जनमत संग्रह का कवरेज
इस मामले में पाक अकाउंट भी अपनी मीडिया के नक्शेकदम पर चलते हुए दिखाई दिये।
3. पाकिस्तान के थिंक टैंक खालिस्तान आंदोलन का कर रहे समर्थन
इन ट्वीट्स का पैटर्न खालिस्तान आंदोलन को समर्थन देकर अपने भारत विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने की पाकिस्तान की गुप्त रणनीति को उजागर करता है।
पाकिस्तानी यूजर्स का फेक न्यूजः
- पाकिस्तान से एक वीडियो शेयर किया गया जिसमें दावा किया गया कि कनाडा में हरदीप सिंह नज्जर की हत्या के खिलाफ भारत के पंजाब के अमृतसर में रॉ कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन कर रहे सिख समुदाय के लोगों ने खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। जांच में हमने पाया कि यह जुलाई-2023 में हुए विरोध प्रदर्शन का पुराना वीडियो है। जहां विदेश में सिख अलगाववादी नेताओं की हत्याओं के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे दल खालसा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
2. ये भी दावा किया गया कि कनाडा ने सिख नेताओं की हत्या के लिए भारत सरकार पर जो आरोप लगाए हैं, उनका व्हाइट हाउस समर्थन करता है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की प्रवक्ता एड्रिएन वॉटसन ने कहा, ”वह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर ‘बहुत चिंतित’ हैं।’ मीडिया रिपोर्ट्स में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि व्हाइट हाउस ने कनाडा के आरोपों का समर्थन किया है।
3. पाकिस्तानी यूजर “दुख्तर ए बलूचिस्तान” ने दावा किया- “हम पहले दिन से कह रहे हैं कि करीमा बलोच को भारत ने एक साजिश के तहत कनाडा में मार डाला और उनकी हत्या के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। यह तो सभी जानते हैं कि कनाडा भारतीयों का मुख्य केंद्र है। इनके कई सक्रिय सेल हैं जो पाकिस्तान और खालिस्तान के खिलाफ काम कर रहे हैं। हाल ही में भारत की ऐसी ही एक और साजिश का खुलासा कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने किया।” लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीमा बलोच के परिवार वालों ने हत्या में पाकिस्तानी सेना पर शक जताया है। करीमा के पति हैदर के मुताबिक इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने पाकिस्तान छोड़ दिया क्योंकि उनके घर पर दो से अधिक बार छापे मारे गए थे। उन्होंने बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों को उजागर करने के लिए कई वैश्विक मंचों पर काम किया था।
खालिस्तान जनमत संग्रह
2020 से विश्वभर में खालिस्तान जनमत संग्रह कराए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसका उद्देश्य भारत के भीतर एक अलग खालिस्तान बनाना है। यह रणनीतिक रूप से सिख प्रवासियों के भीतर अलगाववादी भावनाओं को पैदा करने की कोशिशभर है। लंदन, मेलबर्न, रोम, जिनेवा और ओंटारियो जैसे प्रमुख शहरों में कई मतदान कार्यक्रम आयोजित किए गए। इन खालिस्तानी ग्रुपों की मंशा है कि 2025 में पंजाब में मतदान आयोजित किया जाए। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस मतदान को भारत में कानूनी वैधता नहीं है।
गुरपतवंत सिंह पन्नू का ये भी कहना है कि “एक बार मतदान पूरा हो जाने के बाद हम संयुक्त राष्ट्र में अपना मामला पेश करेंगे और उनसे मांग करेंगे कि वे भारत पर उसी तरह आधिकारिक जनमत संग्रह कराने के लिए दबाव डालें जिस तरह से स्कॉटिश लोगों ने ब्रिटेन में किया था।”
कौन अपना वोट डाल सकता है?
पन्नू के अनुसार, जो व्यक्ति खुद को सिख बताते हैं और कम से कम 18 वर्ष की आयु के हैं, वे वोट देने के पात्र हैं, भले ही उनका जन्म स्थान कुछ भी हो।
जनमत संग्रह की प्रक्रिया की अध्यक्षता कौन करेगा?
इसके अतिरिक्त, पन्नू का दावा है कि यद्यपि एसएफजे मतदान प्रक्रिया के आयोजन के लिए जिम्मेदार है, पंजाब जनमत संग्रह आयोग, एक स्वतंत्र इकाई, वोटों के मिलान के लिए जिम्मेदार होगी।
पंजाब जनमत संग्रह आयोग
वे खुद को ‘स्वतंत्र और गुटनिरपेक्ष प्रत्यक्ष लोकतंत्र और राजनीतिक विशेषज्ञों का एक पैनल बताते हैं जिसका मिशन गैर-सरकारी पंजाब स्वतंत्रता जनमत संग्रह में मतदान की निगरानी करना है।’
पन्नू के समर्थकः
एम. डेन वाटर्स
डेन दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पहल और जनमत संग्रह संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। जो प्रत्यक्ष लोकतंत्र का अध्ययन करने के लिए स्थापित एक शोध और शैक्षिक संगठन है।
पॉल जैकब
पीआरसी उन्हें ‘पहल और जनमत संग्रह में अग्रणी राष्ट्रीय व्यक्ति और सिटीजन्स इन चार्ज और सिटीजन्स इन चार्ज फाउंडेशन’ के अध्यक्ष के रूप में वर्णित करता है। हाल ही में 10 सितंबर 2023 को कनाडा में हुए जनमत संग्रह में उन्हें मतदान के लिए सभा को संबोधित करते देखा गया था।
सरबज सिंह काहलों और दल खालसा को दिए गए साक्षात्कार में, उन्होंने हाल के वर्षों में सिख फॉर जस्टिस के उनके एजेंडे को पूरा करने के लिए जनमत संग्रह आयोजित करने में विशेषज्ञ के तौर पर मदद करने के बारे में बताया था। उन्होंने इस बात का भी बचाव किया कि कैसे सरे के तमानवीस सेकेंडरी स्कूल में स्कूल अधिकारियों ने खालिस्तान के पोस्टर को गलत समझकर कार्यक्रम को रद्द कर दिया। यह सवाल पूछने पर कि क्या पंजाब राज्य में जनमत संग्रह हो सकता है।
उन्होंने कहा, “मेरी जानकारी में पंजाब क्षेत्र में क्या हो रहा है, यह वहां लोगों को गिरफ्तार किए और जेल में डाले बिना नहीं हो सकता। और यह वास्तव में बहुत दुखद है और यही कारण है कि इसे पूरी दुनिया में आयोजित किया जा रहा है, क्योंकि इसे पंजाब में आयोजित नहीं किया जा सकता है।”
10 सितंबर 2023 का जनमत संग्रह
यह ब्रिटिश कोलंबिया के सरे शहर के तमानवीस सेकेंडरी स्कूल में आयोजित होने वाला था। लेकिन ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ पोस्टरों में कृपाण के साथ एके-47 मशीन गन दिखाए जाने के बाद स्कूल अधिकारियों ने इसे वापस ले लिया। प्रचार पोस्टरों में हथियारों की तस्वीरों के साथ-साथ स्कूल की तस्वीरें भी हैं।
बाद में इसे गुरु नानक सिख गुरुद्वारे में स्थानांतरित कर दिया गया – जहां इसके पूर्व अध्यक्ष हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई, ताकि वे हमेशा एजेंडे से जुड़े रहें।
बॉट अकाउंट
यह देखा गया है कि खालिस्तानी अपने एजेंडे के अनुरूप अपने पोस्ट, हैशटैग को प्रसारित करने के लिए अक्सर बॉट अकाउंट का उपयोग करते हैं। इस वर्ष, फरवरी और अप्रैल 2023 के बीच प्रधानमंत्री मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा से पहले पन्नू के वीडियो को शेयर करने के लिए 300 से अधिक अकाउंट बनाए गए थे। वहीं #G20IgnoringHRViolationsInIIOJK और #G20_Boycott_Meeting_in_IIOJK जैसे हैशटैग को बढ़ावा देने के लिए 100 से अधिक नए अकाउंट भी बनाए गए थे। नीचे दिया गया ग्राफ़ इन बॉट अकाउंट के प्रसार विवरण प्रदान करता है।
DFRAC made a detailed analysis of the khalistani propaganda surrounding the g20
निष्कर्ष:
ऐसा प्रतीत होता है कि कनाडाई सरकार द्वारा बहुसंस्कृतिवाद की आड़ लेकर खालिस्तान आंदोलन के समर्थन के लिए किया जा रहा है। हालाँकि कनाडा की राजनीति में सिख राजनेताओं की जबरदस्त वृद्धि को बहुसंस्कृतिवाद की जीत के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह चरमपंथी समूहों के साथ उनके जुड़ाव और खालिस्तान आंदोलन के उनके समर्थन के बारे में भी आशंका पैदा करता है।