भारत के विरुद्ध मीडिया युद्ध में सिर्फ पाकिस्तान और पाकिस्तान से बाहर बैठे हैंडलर को ही दोषी माना जाता है जबकि स्थिति यह है कि आज इस मुहिम में तुर्की और क़तर के कई मीडिया संगठन भी भागीदार बन गए हैं।
पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के आधार पर यह तो कहा जा सकता है कि वहां स्पष्ट तौर पर मुस्लिम ब्रदरहुड की एकल विचारधारा ही काम नहीं कर रही बल्कि मूल रूप से भारत विरोध के इतिहास के नाम पर वह यह सब करता है। हमें समझना यह है कि तुर्की और क़तर और इनका साथ दे रहे अन्य देशों में बसे पत्रकारों और मीडिया संगठनों का क्या गठजोड़ है जो भारत विरोध पर इन्हें उकसाता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि खाड़ी क्षेत्र में भारत के बारे में गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं। सोशल मीडिया, पारंपरिक मीडिया और मौखिक प्रचार जैसे विभिन्न माध्यमों से गलत सूचना फैलाई जा सकती है। किसी भी जानकारी को साझा करने या विश्वास करने से पहले जानकारी की तथ्य-जांच करना और स्रोतों को सत्यापित करना महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक देश की अपनी अनूठी चुनौतियाँ और मुद्दे होते हैं, और अन्य देशों के बारे में सहानुभूति और समझ के साथ चर्चा करना महत्वपूर्ण है।
मुस्लिम ब्रदरहुड 1928 में मिस्र में हसन अल-बन्ना द्वारा स्थापित एक राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन है। इसका घोषित लक्ष्य पारंपरिक इस्लामी मूल्यों और सिद्धांतों को बढ़ावा देना है, और इसका कई मुस्लिम बहुल देशों के राजनीतिक और सामाजिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। संगठन को मिस्र सहित कई देशों में प्रतिबंधित या दबा दिया गया है, जहां इसे 2013 में एक आतंकवादी समूह के रूप में नामित किया गया था जबकि कई अन्य देश इसे एक कट्टरपंथी और चरमपंथी संगठन के रूप में देखते हैं। तुर्की आज वैश्विक रूप से मुस्लिम ब्रदरहुड का अन्तरराष्ट्रीय मुख्यालय के तौर पर काम कर रहा है और क़तर के अमीर तमीम का इनको समर्थन है।
खाड़ी क्षेत्र में भारत के खिलाफ दुष्प्रचार भारत के संबंध में जनमत या नीति को प्रभावित करने के इरादे से झूठी या भ्रामक जानकारी के प्रसार को संदर्भित करता है। इस प्रकार की दुष्प्रचार कई रूप ले सकती है, जैसे फेक न्यूज़, कॉन्सपिरेसी थ्योरी, या एडिट की गई तस्वीरें और वीडियो। इसे सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप और पारंपरिक समाचार आउटलेट सहित विभिन्न चैनलों के माध्यम से फैलाया जा रहा है। खाड़ी क्षेत्र में भारत को लक्षित करने वाली दुष्प्रचार अक्सर पाकिस्तान समर्थक या चीन समर्थक समूहों द्वारा फैलाया जाता है, जो खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों को कमजोर करना चाहते हैं। दुष्प्रचार में अक्सर भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड, अल्पसंख्यकों के साथ इसके व्यवहार और इसकी विदेश नीति के बारे में झूठे दावे शामिल होते हैं।
फरवरी 2021 में समाचार आया था कि तुर्की ने पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के विरुद्ध मीडिया मोर्चा बनाया है। एक Mediterranean-Asian Investigative Journalists नामक संगठन ने यह दावा किया था। इस ख़बर को Research Institute for European and American Studies (RIEAS) ने पुनर्प्रकाशित किया था। ख़बर में बताया गया कि TRT वर्ल्ड और अनादोलू मीडिया ने कई पाकिस्तानी और भारत के कश्मीरी पत्रकारों को इस मुहिम के साथ जोड़ा। तुर्की की खुफिया एजेंसी एमआईटी ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की एजेंसी ISPR यानी इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस के साथ मिलकर काम करना शुरू किया।
यह ज़िम्मेदारी संभालने के लिए TRT वर्ल्ड को आगे किया गया और इसमें कई भारतीय कश्मीरी पत्रकारों को भी उचित योग्यता के बिना जोड़ा गया। TRT वर्ल्ड एक 24-घंटे का अंग्रेजी भाषा का अंतर्राष्ट्रीय समाचार चैनल है, जिसका स्वामित्व और संचालन तुर्की रेडियो और टेलीविज़न कॉर्पोरेशन (TRT) द्वारा किया जाता है। चैनल का मुख्यालय इस्तांबुल, तुर्की में है, और इसका उद्देश्य समाचार और वर्तमान घटनाओं पर “तुर्की परिप्रेक्ष्य” के साथ वैश्विक दर्शकों को प्रदान करना है। टीआरटी वर्ल्ड का भारत में एक ब्यूरो है, जो देश और क्षेत्र में समाचारों और घटनाओं को कवर करता है।
भारत के अपने कवरेज में पक्षपाती होने और देश के बारे में गलत सूचना फैलाने के लिए टीआरटी वर्ल्ड की आलोचना की गई है। कुछ मामलों में, चैनल पर भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड और अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों की भारत में स्थिति के बारे में गलत जानकारी फैलाने का आरोप लगाया गया है। कश्मीर के क्षेत्र पर विवाद के संबंध में पाकिस्तान समर्थक नज़रिये को आगे बढ़ाने के लिए चैनल की आलोचना की गई है। आपको बता दें कि TRT वर्ल्ड तुर्की, अंग्रेज़ी और अरबी समेत कई भाषाओं में समाचार दिखाता है।
भारत विरोधी मीडिया गैंग कुवैत को भारत के विरुद्ध नए क्षेत्र के रूप में विकसित करना चाहते हैं। अप्रैल 2020 में भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि कुवैत को अनाधिकारिक सोशल मीडिया खातों के ‘दुरुपयोग’ को ‘महत्व नहीं देना चाहिए’। कुवैती मंत्रालय के महासचिव के एक पत्र में कथित रूप से भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न को रोकने के लिए ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक क्वॉपरैशन की दखल की मांग की गई थी। कई नॉन वैरीफाइड ट्वीटर खातों से इस पत्र को इतना शेयर किया गया कि भारत के विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी। बाद में कुवैत सरकार के कहने पर कुवैती ट्वीटर अकाउंट Nassar को बंद करवा दिया गया।
सुल्तान कबूस यूनिवर्सिटी फॉर इंटरनेशनल रिलेशंस की असिस्टेंट वाइस चांसलर और ओमान के डिप्टी पीएम सैय्यद फहद की बेटी मोना बिन्त फहद के हवाले से एक फर्जी ट्वीट 2020 में प्रसारित किया गया कि अगर भारत सरकार ने भारतीय मुसलमानों का उत्पीड़न बंद नहीं किया तो ओमान में दस लाख भारतीयों को निष्कासित किया जा सकता है। यह ट्वीट @SayyidaMona हैंडल से किया गया था। मोना बिन्त फ़हाद का प्रतिनिधित्व करने वाला ऐसा कोई ट्विटर हैंडल मौजूद नहीं है। बाद में इस झूठे ट्वीट के बारे में स्पष्टता देने के लिए मोना ने अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट किया कि वह चिन्ताओं के लिए धन्यवाद देती हैं। ऐसी गतिविधियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में आप सभी पर पूरा भरोसा है, जो ओमानी समाज को स्वीकार्य नहीं है, मैं फिर से पुष्टि करता हूं कि सोशल मीडिया में मेरी उपस्थिति @hhmonaalsayd और @MonaFahad13 खातों से ही है।
यह उदाहरण काफी है कि सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से भी पूरे अरब जगत में भारत के संबंधों को खराब करने के लिए एक नियोजित षडयंत्र चल रहा है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गलत सूचना विश्व स्तर पर एक बढ़ती हुई समस्या है, और सच्ची और झूठी जानकारी के बीच अंतर करना मुश्किल हो सकता है। जानकारी के बारे में आलोचनात्मक और संदेहपूर्ण होना महत्वपूर्ण है, खासकर जब यह ऐसे स्रोतों से आता है जो प्रसिद्ध या प्रतिष्ठित नहीं हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और सूचना युद्ध के जानकार हैं )