सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है। इस पोस्ट में सोशल मीडिया यूजर्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के टाइम कैप्शूल को खोलने की मांग कर रहे हैं। इनका दावा है कि इस टाइम कैप्शूल में कई गुप्त दस्तावेज को दफन किया गया है।
फ़ेसबुक पेज भारत ट्रेंड ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, इस घटना की याद शायद ही किसी को होगी। 15 अगस्त 1973 को लाल किले के सामने कुंए में भारी भरकम ताँबे और स्टील के
कैप्सूल में इंदिरा ने कुछ महत्वपूर्ण पब्लिक दस्तावेज गाड़े थे। हिन्दुओं मोदीजी से मांग करो इस स्थल को खोदवाकर दस्तावेज को सार्वजनिक कराये ताकि पता लगे इसमे क्या इतिहास छिपाहै?”
इसी तरह कई अन्य यूजर्स ने इस तस्वीर को पीएम मोदी से साइट को खोदने और दस्तावेज़ को सार्वजनिक करने के अनुरोध के साथ शेयर किया है।
क्या होता है टाइम कैप्सूल?
इस संदर्भ से फैक्ट चेक से पहले आपको बता दें कि टाइम कैप्शूल आखिर होता क्या है? दरअसल टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की जैसा होता है, जिसे खास किस्म के तांबा (कॉपर) से बनाया जाता है। इसकी लंबाई 3 फीट तक होती है। टाइम कैप्सूल को सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रखा जाता है। इसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। इसका इस्तेमाल करके किसी देश के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों को सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सके।
फैक्ट चेकः
कीवर्ड एनालिसिस से हमें इस मामले के संबंध में 27 फरवरी, 2013 को इकोनॉमिक्स टाइम्स में एक आर्टिकल मिला। इस लेख में यह उल्लेख किया गया था कि “शिक्षाविद-लेखक मधु पूर्णिमा किश्वर ने ‘टाइम कैप्सूल’ के बारे में जानकारी मांगी थी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि पीएमओ ने दावा किया था कि इस मामले पर इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है।”
वहीं इंदिरा गांधी के टाइम कैप्सूल के बारे में कई लेख मिले हैं। न्यूज18 के 11 अगस्त 2016 को प्रकाशित एक लेख में उल्लेख किया गया था कि 15 अगस्त 1973 को टाइम कैप्शूल को लाल किले के अंदर दफनाया गया था। 1977 में कांग्रेस सरकार बनाने में नाकामयाब रही और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सत्ता में आ गई। जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लोगों से वादा किया था कि वह टाइम कैप्शूल का पता लगाएंगे और उसकी उसमें दफन दस्तावेजों की जानकारी लोगों को देंगे।
सरकार बनने के कुछ दिनों बाद, टाइम कैप्सूल को हटा दिया गया था। कुछ अनुभवी पत्रकारों का दावा है कि कैप्सूल में इंदिरा गांधी और उनके पिता जवाहरलाल नेहरू की उपलब्धियों के बारे में विवरण थे। एक और दिलचस्प तथ्य यह था कि इंदिरा गांधी सरकार ने कैप्सूल को दफनाने के लिए महज 8,000 रुपये खर्च किए थे। हालांकि, बाद की सरकार को इसे निकालने के लिए कथित तौर पर 58,000 रुपये से अधिक खर्च करने पड़े। हालांकि उस कैप्सूल का क्या हुआ यह ज्ञात नहीं है और आज तक कोई भी इसकी सामग्री से पूरी तरह वाकिफ नहीं है।
निष्कर्षः
इसलिए, हमारे तथ्य-जांच विश्लेषण से, यह स्पष्ट है कि 1977 में टाइम कैप्सूल का खुलासा हो चुका है। सोशल मीडिया यूजर्स की यह मांग कि पीएम मोदी से टाइम कैप्सूल का पता लगाने की मांग निराधार है, इसलिए वायरल पोस्ट भ्रामक है।
दावा: पीएम मोदी से पूर्व पीएम इंदिरा के टाइम कैप्सूल का पता लगाने की मांग
दावाकर्ता: सोशल मीडिया यूजर्स फैक्ट चेक: भ्रामक |