मणिपुर में रह रहकर हिंसा भड़क रही है। इस हिंसा में अब तक 150 से ज्यादा लोगों के मौत की बात सामने आ रही है, जबकि हजारों लोग बेघर हुए हैं। इसे एक भीषण मानव त्रासदी कहा जा सकता है। इस हिंसा के दौरान कई ऐसी दर्दनाक घटनाएं भी देखने को मिली, जो मानवता को शर्मसार करती हैं। राज्य सरकार पर भी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। आरोप है कि राज्य की मशीनरी का दुरुपयोग हो रहा है। इन सबके बीच मणिपुर हिंसा के पीछे की वजहों को लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस लेख में मणिपुर की घटना से जुड़ी पूरी जानकारी प्रदान की जा रही है। DFRAC की इस रिपोर्ट में हम निम्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं-
- मणिपुर का इतिहास और सामाजिक स्थिति
- कुकी और मैतेई का इतिहास और संघर्ष
- फ़ेक और भ्रामक खबरों की पड़ताल
- हिंसा की आड़ मे “भारत विरोधी” अभियान
- जातीय संघर्ष को “धार्मिक” रंग देने का प्रयास
भारत का गहना है मणिपुरः
मणिपुर हिंसा के बारे में जानने से पहले ये समझिए कि मणिपुर क्या है और भारत के लिए यह कैसे महत्वपूर्ण है? मणिपुर को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारत का गहना कहा था। मणिपुर नौ पहाड़ियों से घिरी हुई है, जो एक प्रकृति द्वारा निर्मित गहना के तौर पर दिखती है। इसलिए इसका नाम ‘ए ज्वेल्ड लैंड’ यानी ‘मणिपुर’ है। सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज का भी मणिपुर से इतिहास जुड़ा है। दरअसल मणिपुर के विष्णुपुर जिले का मोइरांग इलाका सबसे पहले आजाद हुआ था। यहां ब्रिटिश आर्मी को सुभाष चंद्र बोस की आर्मी INA ने आमने-सामने की टक्कर में हराकर पूरे क्षेत्र को आजाद कराया था। मोइरांग में ही 14 अप्रैल को आज़ाद हिन्द फौज के कर्नल शौकत मलिक ने तिरंगा फहराया था।
मणिपुर का सामाजिक ताना-बानाः
मणिपुर की सामाजिक संरचना यह है कि यहां के प्रमुख सामाजिक समूहों में मैतेई, कुकी और नगा हैं। मैतेई बहुंसख्यक हैं, जो राज्य की कुल आबादी में करीब 55 प्रतिशत तक माने जाते हैं। इसके अलावा कुकी और नगा समुदायों सहित कुल 35 जनजातियां हैं, जिनकी आबादी 35 से 40 प्रतिशत के आस-पास मानी जाती है। मैतेई समुदाय आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे प्रभावशाली और ताकतवर हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में 40 विधायक मैतेई समुदाय से आते हैं। राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बाकी 20 विधायक जनजातिय समूहों और अन्य वर्गों से हैं।
मणिपुर में जातीय समूहों की बसावटः
मणिपुर की 60 फीसद आबादी इम्फाल शहर और उसके आसपास के इलाकों में बसी है। इस इलाक़े को सेंट्रल वैली या इम्फाल वैली के नाम से जाना जाता है, जो मणिपुर के कुल भूभाग का केवल 10 फीसदी है। यह भूभाग बहुत उपजाऊ माना जाता है। कुकी और नगा इम्फाल घाटी से सटे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है। पहाड़ी इलाकों में कुकी और नगा समुदायों की रिहाइश है, जबकि मैदानी इलाकों में मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं।
मैतेई पंगल या मैतेई मुस्लिमः
कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि मैतेई समुदाय में मुस्लिम वर्ग भी है, जिन्हें मैतेई पंगल कहा जाता है। यहां पंगल का शाब्दिक अर्थ मुस्लिम बताया गया है। वीकिपीडिया के अनुसार- पंगल शब्द का प्रयोग ऐतिहासिक रूप से मैतेई द्वारा सभी मुसलमानों को दर्शाने के लिए किया गया था। राज्य की कुल आबादी में मुस्लिम की जनसंख्या 8 प्रतिशत मानी जाती है।
वहीं वीकिपीडिया के ही मुताबिक कुकी जनजाति में मुस्लिम का एक वर्ग बन गया है। इसमें बताया गया है कि- मुस्लिम-बहुल बंगाल के निकट होने के कारण कुकी मुस्लिम समुदाय भी विकसित हो गया है। ऐसा कहा जाता है कि वे कुकी पुरुषों के वंशज थे, जिन्होंने बंगाली मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी। इस रिश्ते के लिए पति का मुस्लिम होना आवश्यक था। वे ज्यादातर उदयपुर के त्रिपुरी शहर के उत्तरी चंद्रपुर गांव के आसपास केंद्रित हैं। हालांकि कुकी मुस्लिमों के मणिपुर में रहने के कोई प्रमाण हमें नहीं मिले हैं।
कब शुरू हुआ विवाद?
मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग की जाती रही है। इसके लिए मैतेई संघ की तरफ से एक याचिका भी मणिपुर हाई कोर्ट में दायर की गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि 1949 में भारत में विलय से पहले मैतेई समुदाय को जनजाति के रूप में मान्यता मिली हुई थी, लेकिन बाद ही ये खत्म हो गई। इनकी दलील थी कि मैतेई समुदाय, उसके पूर्वजों की ज़मीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए जनजाति का दर्जा ज़रूरी है। इस मामले पर 14 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश प्राप्ति के 4 हफ्तों के भीतर सिफारिश करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट के इस फैसले ने मणिपुर का माहौल गर्मा दिया। नगा और कुकी जनजाति इसका विरोध करने लगे। मणिपुर के जनजाति समूहों का तर्क है कि मैतेई का आर्थिक और सियासी दबदबा है। जनजाति समूहों का मानना है कि अगर मैतेई को जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे, इसके अलावा वो पहाड़ों पर भी ज़मीन ख़रीदना शुरू कर देंगे, जिससे जनजाति समूह हाशिए पर जा सकते हैं। इन जनजाति समूहों का ये भी तर्क है कि मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और मैतेई को अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और EWS का फ़ायदा भी मिल रहा है। इन्हीं सब विवादों को लेकर 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने एक रैली आयोजित की थी, यह ‘आदिवासी एकजुटता रैली इंफ़ाल से क़रीब 65 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर हुई। इसमें हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए। इसी दौरान जनजातीय समूहों और दूसरे समूहों के बीच झड़पें शुरू हो गईं। फिर ये हिंसा दूसरी जगहों पर भी फैलती चली गई।
मणिपुर का विवाद धार्मिक या ज़मीन पर अधिकारों की लड़ाई?
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर हिंसा के पीछे ‘कब्जे की जंग’ माना जा रहा है। इसके पीछे का तर्क यह है कि राज्य के करीब 55 फीसदी मैतेई समुदाय के लोग सिर्फ 10 फीसदी वाले मैदानी इलाकों में बस सकते हैं। जबकि कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी मानी जाती है, जो राज्य की 90 फीसदी पहाड़ी इलाकों पर रहते हैं। आज तक के अनुसार मणिपुर के कानून के तहत पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं और मैतेई चूंकि गैर-आदिवासी हैं, इसलिए वह पहाड़ी इलाकों में बस नहीं सकते हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट में भी बताया गया है कि यहां विवाद जमीन पर अधिकार का है। रिपोर्ट के अनुसार- “झगड़े की वजह यही है, क्योंकि मैतेई लोग कुकी इलाक़ों में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते और अब वे भी जनजाति का दर्जा चाहते हैं। ज़ाहिर है, मसला ज़मीन पर अधिकार का है। 28 लाख की आबादी में बहुसंख्यक मैतेई घाटी में रहते रहे हैं जबकि कुकी आबादी चार पहाड़ी ज़िलों में बसी हुई है।”
वहीं कई अन्य मीडिया रिपोर्ट्स में भी हिंसा के पीछे की वजहों में जमीन पर अधिकार, आदिवासी का दर्जा दिए जैसी बातें लिखी गई हैं।
मणिपुर हिंसा के पीछे की वजहों में अफीम की खेती?
मणिपुर में हिंसा की वजहों में मुख्य रुप से अफीम की खेती को माना जा रहा है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में भी अफीम की खेती का जिक्र किया गया है। इन मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि राज्य सरकार लगातार अफीम की खेती पर कार्रवाई कर रही है, जो ज्यादातर कुकी समुदाय से जुड़ी हुई है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक- मणिपुर में अंतर्निहित तनाव विभिन्न कारकों की जटिल परस्पर क्रिया से उत्पन्न होता है, जिनमें से एक हाल के वर्षों में नशीली दवाओं पर कार्रवाई है। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, जो मैतेई हैं, के नेतृत्व में अफीम की खेती को लक्षित करते हुए एक विवादास्पद अभियान चलाया। 2017 के बाद से सरकार ने 18,600 एकड़ से अधिक अफीम खेतों को नष्ट करने का दावा किया है, जिनमें से अधिकांश कुकी के क्षेत्र हैं।
वहीं कई अन्य मीडिया रिपोर्ट्स में भी हिंसा की वजहों में अफीम की खेती का जिक्र किया गया है।
मणिपुर हिंसा पर फेक न्यूजः
मणिपुर हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर कई प्रकार के भ्रामक और फेक न्यूज भी शेयर किए जा रहे हैं। इन फेक न्यूज का DFRAC की टीम ने फैक्ट चेक किया है। कई फैक्ट चेक को यहां दिया जा रहा है-
फैक्ट चेक-1-
सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर दावा किया गया कि मणिपुर में पुलिस का विरोध करने के लिए अलग से नंगी औरतों की टीम बनाई गई है, वे नंगी हो कर पुलिस को खदेड़ रही हैं।
वायरल वीडियो का मणिपुर से कोई संबंध नहीं है। यह वीडियो उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों के दौरान का है, जब चंदौली जिले में नगर पालिका परिषद के चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए निर्दल प्रत्याशी सोनू किन्नर के समर्थकों ने हंगामा किया था। नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके फैक्ट चेक को पढ़ा जा सकता है।
फैक्ट चेक-2-
सोशल मीडिया पर एक वीडियो को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि मणिपुर में 300 साल पुराना चर्च जला दिया गया।
जब वायरल वीडियो का फैक्ट चेक किया गया, तो परिणाम सामने आया कि यह वीडियो मणिपुर का नहीं बल्कि फ्रांस में हुई हिंसा के दौरान का है।
फैक्ट चेक-3-
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है। इस वीडियो में एक महिला के साथ मारपीट होते देखा जा सकता है। यूजर्स का दावा है कि इस ईसाई महिला की ‘आउट मोदी’ चिल्लाने पर हत्या कर दी गई। एक यूजर ने लिखा- “दुनिया को हिंदू आतंक के बारे में जानने की जरूरत है।’ जबकि #मोदी दुनिया भर में यात्रा करते हैं और हिंदू डेस्पोरा द्वारा उनकी पूजा की जाती है। भारत में वापस. राज्य द्वारा मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों को व्यवस्थित रूप से मारा जा रहा है। सिर्फ आउट मोदी चिल्लाने पर इस गरीब ईसाई की हत्या कर दी गई!”
फैक्ट-
वायरल वीडियो भारत का नहीं बल्कि म्यांमार का है और यह घटना फरवरी 2022 की है। इसलिए सोशल मीडिया यूजर्स का दावा गलत है।
हिंसा की आड़ मे “भारत विरोधी” अभियानः
मणिपुर की घटना को धार्मिक एंगल देकर पाकिस्तानी यूजर्स ने काफी ट्वीट किए हैं। इन यूजर्स ने मणिपुर के जातीय संघर्ष को धार्मिक एंगल देते हुए इसे ईसाईयों (कुकी-नगा) पर हिन्दुओं (मैतेई) के अत्याचार के तौर पर प्रचारित और प्रसारित किया गया है। जबकि कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह सामने आ चुका है कि यह धार्मिक हिंसा नहीं है और हिंसा के शुरुआत होने की मुख्य वजह जमीन और अधिकारों के लिए संघर्ष है। पाकिस्तानी यूजर्स ने बड़ी ही चालाकी से मणिपुर हिंसा के साथ 1984 के सिख विरोधी दंगों को भी जोड़ा है। इसके लिए उन्होंने 2 फोटो का कोलाज भी शेयर किया है। यहां आप कोलाज को देख सकते हैं।
कोलाज का फैक्ट चेकः
यहां सबसे रोचक बात यह है कि पाकिस्तान में वायरल कोलाज में जिस फोटो को 1984 के सिख विरोधी हिंसा का बताया जा रहा है, दरअसल वो फोटो भारत का है ही नहीं। यह फोटो 1983 में श्रीलंका में तमिल भाषियों के खिलाफ हुई हिंसा का है, जिसे श्रीलंका का सिविल वार भी कहा जाता है। इसे ब्लैक जुलाई “Black July” का नाम भी दिया गया है।
यहां पाकिस्तानी यूजर्स द्वारा पोस्ट किए फेक फोटो का कोलाज दिया जा रहा है-
पाकिस्तान में गूगल पर मणिपुर सर्च का ट्रेंडः
“मणिपुर हिंसा” पर पाकिस्तान का गूगल ट्रेंड दिखाता है कि यह कीवर्ड देश में कितना लोकप्रिय था। यह 18 जुलाई से शुरू हुआ और सबसे ज्यादा सर्च किया गया। इसके अलावा और भी दिनों में पाकिस्तान में मणिपुर को सर्च किया गया था, जिसे नीचे दिए ग्राफ में देखा जा सकता है।
इसके अलावा पाकिस्तान में मणिपुर के बारे में सबसे ज्यादा सर्च इस्लामाबाद किया गया था। इसके बाद सिंध, पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा था।
“मणिपुर हिंसा” के बारे में सबसे ज्यादा सर्च भारत में किया गया। इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत और सिंगापुर से भी इसी कीवर्ड पर महत्वपूर्ण संख्या में सर्च किया गया है।
वहीं भारत विरोधी अभियान चलाने वाले कुछ पाकिस्तानी यूजर्स का ट्वीट यहां दिया जा रहा है-
- पाकिस्तान के मुदस्सिर (@MudassarJatta) नामक यूजर ने लिखा- “1984 में भारत सरकार के गुंडों द्वारा सिख महिलाओं पर जो अत्याचार हुआ और इतने साल बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिला है। और आज फिर मणिपुर में हिंदू गुंडे ईसाई महिलाओं के साथ ऐसा कर रहे हैं। लोकतंत्र कहां है?”
- ट्विटर पर Proud Pakistani (@S_kamikhan) नामक यूजर ने लिखा- “#मणिपुर में हिंदुओं द्वारा ईसाई महिलाओं का अपमान किया गया, यह बेहद शर्मनाक और घृणित है” (हिन्दी अनुवाद)
- पाकिस्तान के लाहौर की रहने वाली इनाया एजाज (@InayaAjaz) नाम की यूजर ने लिखा- “1984 में भारत सरकार के गुंडों द्वारा सिख महिलाओं पर जो अत्याचार हुआ और इतने साल बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिला है। और आज फिर मणिपुर में हिंदू गुंडे ईसाई महिलाओं के साथ ऐसा कर रहे हैं। लोकतंत्र कहां है?”
- पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट के कर्मचारी एम सुफियान बसरा (@msufyanbasra) नामक यूजर ने लिखा- “1984 में हिंदू गुंडों द्वारा सिख महिलाओं पर किए गए अत्याचार, साथ ही इतने वर्षों तक न्याय का अभाव, बेहद चिंताजनक बना हुआ है। अफसोस की बात है कि आज भी मणिपुर में हिंदू गुंडों द्वारा ईसाई महिलाओं के खिलाफ इसी तरह की हरकतें की जा रही हैं।”
मणिपुर हिंसा को धार्मिक एंगल देने की कोशिशः
सोशल मीडिया पर यूजर्स ने मणिपुर की जातीय हिंसा को धार्मिक एंगल देकर पोस्ट शेयर किया है। पीड़ितों की धार्मिक पहचान ईसाई कुकी महिलाओं के रूप में उल्लेख करके यह बताने की कोशिश हो रही है कि हिंसा धार्मिक असहिष्णुता या घृणा से प्रेरित हो सकती है। Indian American Muslim Council (IAMC) ने इस घटना को धार्मिक एंगल देकर पोस्ट शेयर किया है।
मणिपुर को लेकर अशोक स्वैन ने पोस्ट शेयर किया है। उनका ट्वीट सांप्रदायिक लहजे के साथ मणिपुर की स्थितियों को संदर्भित करता है। इस ट्वीट में लंबे समय से चल रही हिंसा, मरने वालों की ज्यादा संख्या (ज्यादातर कुकी ईसाई समुदाय बताना), कई चर्चों को जलाना और बड़ी संख्या में एक विशेष धार्मिक समूह के लोगों का विस्थापन की बात की गई है। इसके अलावा कुकी महिलाओं को नग्न घुमाने और मैतेई भीड़ द्वारा यौन उत्पीड़न का उल्लेख सांप्रदायिक एंगल से किया गया है।
अबु हफ्सा नामक यूजर का ट्वीट मणिपुर की घटना को दो पक्षों कुकी (ईसाई) और मैतेई (हिंदू) के रूप में चित्रित कर इसे सांप्रदायिक एंगल देता है।
South Asia Index के ट्वीट में मणिपुर हिंसा के पीछे धार्मिक तनाव को प्रतिबिंबित करने वाले सांप्रदायिक एंगल दिखता है। जातीय संघर्ष को दो धार्मिक समुदायों (ईसाई और हिंदू) के बीच संघर्ष के रूप में दिखाया गया है। इस ट्वीट में यह भी दिखाने की कोशिश की गई है कि राज्य सरकार द्वारा मैतेई समुदाय को समर्थन मिल रहा है।
अब्दुल्लाह अलमादी (@Abdulla_Alamadi) के ट्विट में साफ तौर पर मणिपुर पर केंद्रित एक स्पष्ट सांप्रदायिक स्वर और हिंदुओं की नकारात्मक छवि के चित्रण पर प्रकाश डालता है। बिलकिस बानो की कहानी, जो कि सांप्रदायिक हिंसा का मामला था, से तुलना सांप्रदायिक एंगल को और मजबूत करती है। अंत में “अल्पसंख्यक खतरे में” कथन उल्लिखित घटना के संबंध में अल्पसंख्यक समुदायों के खतरे में होने की एक कहानी का जोर देता है। कुल मिलाकर, पैराग्राफ में धार्मिक और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाले सांप्रदायिक पहलू शामिल हैं।
वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में उल्लिखित घटना में एक संभावित सांप्रदायिक एंगल दिया गया है। रिपोर्ट में मणिपुर में जातीय हिंसा का वर्णन किया गया है, जो ईसाई कुकी और ज्यादातर हिंदू मैतेई लोगों से जुड़े विवाद से शुरू हुई थी। इस रिपोर्ट में ऐसा प्रतीत होता है कि संघर्ष का सांप्रदायिक आयाम है, क्योंकि इसमें भूमि अधिकारों और सरकारी नौकरियों से संबंधित मुद्दों पर विभिन्न जातीय समूहों (ईसाई कुकी और हिंदू मेइतेई) के बीच झड़पें शामिल हैं। हिंसा और झड़पों के परिणामस्वरूप 130 से अधिक लोगों की मौत हो गई और संघर्षरत गुटों द्वारा सशस्त्र मिलिशिया का गठन हुआ। वीडियो में उल्लिखित हमले के पीड़ितों की पहचान मणिपुर के एक आदिवासी संगठन कुकी-ज़ोमी समुदाय के सदस्यों के रूप में की गई है। यह तथ्य कि हिंसा जातीय आधार पर हो रही है, संघर्ष के सांप्रदायिक पहलू को इंगित करता है।
वहीं अल-जजीरा (@AJEnglish) के लेख में स्पष्ट सांप्रदायिक टोन के साथ मणिपुर की घटना पर प्रकाश डाला गया है। इस घटना को हिंदू मैतेई और ईसाई कुकी-ज़ोमी जनजातियों के बीच एक घातक जातीय दंगे के रूप में वर्णित किया गया है।
निष्कर्षः
मणिपुर हिंसा के पीछे की मुख्य वजह में जमीन का अधिकार और आदिवासी दर्जे की बात सामने आई है। इस हिंसा के पीछे धार्मिक विवाद जैसा कोई एंगल नहीं है। ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली, जिसमें यह उल्लिखित किया गया हो कि हिंसा के पीछे धार्मिक कारण भी हैं। वहीं सोशल मीडिया पर भी मणिपुर को लेकर कई तरह की फेक और भ्रामक न्यूज फैल रही है। इसके अलावा पाकिस्तान और वेस्टर्न मीडिया द्वारा इस घटना में यह संदर्भ उल्लेखित किया जा रहा है कि यहां ईसाई समुदाय और हिन्दू समुदाय के बीच विवाद है। वहीं पाकिस्तानी यूजर्स इस घटना के बहाने बड़ी चालाकी सिख विरोधी हिंसा की घटनाओं को भी उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे यह माहौल बनाया जा सके कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं है।