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BHU में होली खेलने पर प्रतिबंध, लेकिन वीसी करते हैं इफ़्तार पार्टी का आयोजन? पढ़ें- फ़ैक्ट-चेक

सोशल मीडिया पर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) को लेकर एक दावा किया जा रहा है कि यूनिवर्सिटी में होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दी गई है जबकि कुलपति (VC) द्वारा रमज़ान में इफ़्तार पार्टी का आयोजन किया गया था। 

राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य के ऑफ़िशियल ट्विटर अकाउंट द्वारा दो तस्वीरों को शयेर कर लिखा गया, “काशी हिंदू विश्वविद्यालय में होली खेलने पर लगा प्रतिबंध। BHU प्रशासन ने जारी किया आदेश, सुधीर जैन हैं के VC लेकिन इसी BHU में रमजान के महीने में VC ने आयोजित की थी इफ़्तार पार्टी।”

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इन दो तस्वीरों में एक इफ़्तार पार्टी की तस्वीर है और दूसरी होली को लेकर जारी किये गए सर्कुलर की, जिसमें कहा गया है कि BHU के परिसर में सार्वजनिक स्थल पर एकत्रित होकर होली खेलना, हुड़दंग करना और संगीत बजाना पूर्णतया प्रतिबंधित है। ऐसा करने वालों के विरूद्ध प्रशासनिक कार्यवाही की जायेगी।

कई अन्य सोशल यूज़र ने भी ऐसा ही दावा किया है। 

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फ़ैक्ट चेक

क्या BHU कुलपति ने रमजान के महीने में इफ़्तार पार्टी का आयोजन किया था? इस वायरल दावे का फ़ैक्ट चेक करने के लिए DFRAC टीम ने कुछ की-वर्ड की मदद से गूगल पर सर्च किया। हमें इस बाबत कई मीडिया हाउसेज़ द्वरा पब्लिश न्यूज़ रिपोर्ट मिलीं।

न्यूज़ पोर्टल oneindia ने हेडलाइन,“इफ़्तार विवाद पर बीएचयू की सफ़ाई, 2 दशक पुरानी परंपरा, वी-सी ने नहीं किया आयोजन” के तहत रिपोर्ट पब्लिश की है। 

oneindia

वहीं हिन्दुस्तान टाईम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि विश्वविद्यालय के सहायक सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी चंदर शेखर ग्वारी ने ट्विटर पर पूरे मामले में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया।

hindustantimes

रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा,“2 चीजों के बारे में कोई भ्रम या ग़लत सूचना नहीं होनी चाहिए: 1. #इफ़्तार का आयोजन कुलपति प्रो. सुधीर के जैन द्वारा नहीं किया गया था। छात्रों और शिक्षकों ने उन्हें आमंत्रित किया और उन्होंने #BHU बन्धुत्व के प्रमुख के रूप में भाग लिया। 2. बीएचयू में इफ़्तार के आयोजन की परंपरा 2 दशक से भी पुरानी है।”

निष्कर्ष:

मीडिया रिपोर्ट्स स्पष्ट है कि पाञ्चजन्य समेत अन्य सोशल मीडिया यूज़र्स का दावा भ्रामक है। बीएचयू में कुलपति ने इफ़्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया था, इफ्तार पार्टी का आयोजन छात्रों और शिक्षकों द्वारा किया गया था, जो दो दशक पुरानी परंपरा है।

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