राजनीति में अपनी असफलताओं को दूसरों से सिर मढ़ने की रिवायत बहुत पुरानी है। वर्तमान सरकार के कई मंत्री भी इस रिवायत को दोहराते आए हैं। आर्थिक मोर्चे पर विफलताओं को लेकर कई बार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर ठीकरा फोड़ा जाता है। 31 जुलाई 2021 को मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि आजादी के बाद अर्थव्यवस्था को पंगु बनाकर महंगाई बढ़ाने का श्रेय नेहरू परिवार को जाता है। महंगाई एक-दो दिन में नहीं बढ़ती। अर्थव्यवस्था की नींव एक-दो दिन में नहीं रखी जाती है। 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से नेहरू द्वारा दिए गए भाषण की गलतियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई।
फैक्ट चेकः
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को लाल किले से कोई भाषण नहीं दिया था। उनका प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ था, जिसे उन्होंने 14 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान सभा से दिया था। इसलिए मंत्री विश्वास सांरग का बयान गलत और तथ्य पर आधारित नहीं है।
नेहरू को विरासत में क्या मिला था?
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद हर भारतीय खुश था। लोग जश्न मना रहे थे। लेकिन इन खुशियों के बीच बंटवारे का एक ऐसा दर्द था, जो अंतहीन था। जिसमें हजारों भारतीय मारे गए थे, लाखों लोग शरणार्थी हो गए थे। देश की आर्थिक हालत बहुत ही खस्ता थी। देश के पास खाद्यान्न का भंडारण नहीं था। ये इसलिए था क्योंकि भारत के विकास को अंग्रेजों ने 200 वर्षों के शासन के दौरान बुरी तरह से उपेक्षित किया था। आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार को न सिर्फ देश के पुनर्निमाण का कार्य विरासत में मिला था, बल्कि लोकतंत्र और उसके मानकों को स्थापित करना और बरकरार रखने की जिम्मेदारी भी मिलि थी, क्योंकि यूरोपीय और अमेरिकी देशों को ऐसा लग रहा था भारत लोकतंत्र को जिंदा रखने में कामयाब नहीं होगा और जल्द ही यहां अराजकता फैल जाएगी।
आजादी के वक्त भारत की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती थी। भारत में निरक्षरता की एक बड़ी समस्या थी क्योंकि अंग्रेजों ने कभी भी लोगों को शिक्षित करने की जहमत नहीं उठाई। स्वतंत्रता के बाद भारत की साक्षरता दर केवल 18% थी यानी देश की 80% से अधिक आबादी निरक्षर थी। इससे पहले बंगाल एक विनाशकारी त्रासदी यानी अकाल से टूट चुका था, जब वहां 3 मिलियन से अधिक लोग अकाल से मर गए थे और जिसका मुख्य कारण विंस्टन चर्चिल द्वारा इस क्षेत्र में खाद्य सामग्रियों को यूरोप में संग्रहित कर दिया गया था। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान भारत की वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी 4 प्रतिशत रह गई थी, जो मुगलकाल के दौरान 30% हुआ करती थी।
नेहरू को अंग्रेजों से केवल दर्द और पीड़ा विरासत में मिली थी। दूसरे देशों को ऐसा लगता था कि भारत में लोकतंत्र का प्रयोग विफल होगा, लेकिन यह नेहरू की दृढ इच्छाशक्ति थी जिसने देश के कोने-कोने में जाकर जागरूकता फैलाने का काम किया था, जो लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को सफल किया और भारत को पूरी दुनिया का सबसे लोकतंत्र बना दिया।
नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति ने भारत को अन्य देशों के ऋणी होने से बचाने में मदद की। आजादी के वक्त स्वतंत्र भारत में वस्तुओं के निर्माण और उत्पादन और सभी औद्योगिक वस्तुओं का अभाव था। नेहरू के शासनकाल के दौरान इस सेक्टर में तेजी से वृद्धि हुआ। नेहरू ने इस्पात उत्पादन को तेजी से शुरु करवाया और विनिर्माण उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित किया। 1960 तक, विदेशों पर यह निर्भरता 45% तक कम हो गई थी और 1974 तक यह केवल 4% था। समाजवाद और पूंजीवाद के मिश्रण की नेहरू की नीति, जिसने न केवल सार्वजनिक बल्कि निजी उद्योगों को प्रोत्साहित किया। इस नीति ने 1962 में चीन, जापान और ब्रिटेन को दरकिनार करते हुए भारत को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने में मदद की।
नेहरू ने देश के लिए यह सुनिश्चित किया कि भारत अपनी विविधता के साथ एक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहेगा। इसके अलावा पंचायती राज प्रणाली से गांवों में लोगों को सशक्त बनाया गया। इन सबके बावजूद पंडित नेहरू की हालिया वर्षों में काफी आलोचनाएं की गईं। लेकिन उनके शासन और नेतृत्व के वर्ष एक ऐसा उदाहरण हैं जब बौद्धिक और आर्थिक स्वतंत्रता उतनी ही महत्वपूर्ण थी जितनी कि राजनीतिक स्वतंत्रता।